एक मछुआरा समुद्र के किनारे अपने परिवार को लेकर रहता था और जीवन यापन के लिए समुद्र में मछलियाँ पकड़ता था । उसी से उसका और उसके परिवार का भरण पोषण होता था । उस मछुआरे ने सुन रखा था कि समुद्र एक देवता है और उनके पास अपार निधि है । एक दिन उसने सोचा क्यों न समुद्र देवता की अराधना करें और उनसे कोई वरदान प्राप्त कर लें , जिससे उसका और उसके गरीब परिवार का कुछ कल्याण हो जाए ।
इसी विचार से उसने समुद्र देवता की भक्ति में अराधना प्रारम्भ कर दी । कुछ दिनों पश्चात समुद्र देवता उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्होंने प्रसन्न हो कर उस मछुआरे को एक शंख भेंट किया । शंख देकर समुद्र देवता ने उस मछुआरे से कहा , यह शंख तुम्हारी सारी आवश्यकताएं पूर्ण करेगा । बस इसके प्रयोग में इतना ध्यान रहे कि यह शंख दिन भर में केवल एक ही बार तुम्हारी मांग पूरी करेगा उसके पश्चात इसे पुनः प्रयोग में लाने के लिए अगले दिन की प्रतीक्षा करनी होगी । मछुआरा अत्यंत प्रसन्न हुआ । परन्तु दो चार दिन बाद ही उस शंख के प्रयोग की सीमा के कारण तनिक असमंजस में पड़ गया और सोचने लगा कि काश , उस शंख के प्रयोग की कोई सीमा न होती तब कितना उत्तम होता ।
इसी विचार के साथ उस मछुआरे ने पुनः समुद्र देवता की अराधना प्रारम्भ कर दी । कुछ दिनों की पूजा के बाद समुद्र देवता पुनः प्रसन्न हो गये और उस मछुआरे के मन की इच्छा जानकार उन्होंने उसे अपने हाथों से एक दूसरा शंख प्रदान किया उससे कहा कि इसका नाम 'ढपोरशंख' है । इस शंख से तुम जो कुछ भी मांगोगे ,यह शंख उसका दुगुना तुम्हे देने की बात कहेगा और इसके प्रयोग की कोई सीमा भी नहीं है। इतना सुनते ही उस मछुआरे ने पुराना शंख समुद्र में वापस फेंक दिया और 'ढपोरशंख' को लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर चल दिया ।
घर पहुँचते ही उसने ढपोरशंख से एक नए महल की मांग की ,सुनते ही वह शंख बोला ,एक क्या दो महल ले लो ,इस पर मछुआरा बोला ,ठीक है दो महल बना दो ।शंख फिर तपाक से बोल उठा ,दो क्या चार महल ले लो । फिर मछुआरे ने उस शंख से धन ,वैभव , सम्पदा या जिस भी वस्तु की मांग की , उस शंख ने मांगी गई मात्रा के दोगुने,चौगुने को देने की बात की परन्तु वास्तविकता में उस शंख से उस मछुआरे को हासिल कुछ नहीं हुआ ।
मछुआरा यह जान और देख कर अत्यंत कुपित हुआ और पुनः समुद्र के किनारे खड़े हो कर समुद्र देवता को याद कर प्रार्थना करने लगा । समुद्र देवता पुनः प्रकट हुए । उनसे उस मछुआरे ने अपनी व्यथा बताई ,इस पर समुद्र देवता मुस्कराते हुए बोले , जिस शंख से तुम्हारी एक इच्छा प्रतिदिन पूरी हो सकती थी , तुमने उसे तो समुद्र में फेंक दिया और दूसरा शंख, जो मैंने तुम्हे बाद में दिया, वह तो ढपोरशंख है ,केवल बोलता है ,करता कुछ नहीं है ।
यह सुनकर मछुआरे ने अपनी गलती का एहसास किया और फिर कभी बिना श्रम किये कुछ पाने की लालसा छोड़ मेहनत कर अपना जीवन यापन प्रारम्भ कर दिया ।
" मछुआरे का जो हुआ सो हुआ परन्तु तब से हमारे समाज में ढपोरशंखो की भरमार अवश्य हो गई ।"
सच कहा आपने, करता कोई नहीं, कहते सब हैं।
जवाब देंहटाएंसच ...सिर्फ बातें कहाँ कुछ कर पाएंगीं ....
जवाब देंहटाएंसच कहा सर! आजकल ढपोरशंख हर जगह देखने को मिल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
ढपोर शंख ही हैं हर तरफ , सच कहते हैं !
जवाब देंहटाएंरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही ताकीद की थी की कलियुग में ढपोर शंख ही पूजे जायेंगे !
बढ़िया कथा आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
पोर पोर अवगुण भरा, बड़ी-कड़ी है खाल |
ढप ढप ढंग ढपोर सा, बोली मधुर निकाल |
बोली मधुर निकाल, मांग दुगुनी करवाते |
चलते रहते चाल, कभी भी दे नहिं पाते |
रविकर शंख ढपोर, फेंक जल में बस यूं ही |
अमित आत्मिक चाह, पाय उद्यम से तू ही ||
रविकर साहब , इतनी सुन्दर पंक्तियों से नवाज़ने के लिए बहुत बहुत आभार ।
हटाएंयह भी बता दूं आपको , मैं भी रकाबगंज ,फैजाबाद से ही हूँ ।
sundar prahar kiya hai aapne
जवाब देंहटाएंबहुत लोगों को अपनी सुध आ गयी होगी... :)
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
ऐसे ढपोर शंखों की कमी नहीं , एक ढूंढो हजार मिलते हैं.
जवाब देंहटाएंHA HA HA.. mast.. aaj kal to yahi haal hain :)
जवाब देंहटाएंसबसे बढ़ा ढपोरशंख शासन है। समाज शासन द्वारा शासित होता है।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी।
Aaj ke Sashan me yehi ho Raha hai
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