शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

" के.वाई.सी. ......."


आजकल एक फैशन आम हो चला है ," के.वाई.सी. " का ,अर्थात 'know your customer' | कभी बैंक से नोटिस  आती है और कभी गैस कंपनी से कि ,कृपया अपना के.वाई.सी. करा लें नहीं तो आपकी सेवायें बंद कर दी जायंगी | दसियों साल से अधिक से बैंक में , गैस कंपनी में निरंतरता बनी हुई है फिर भी अपनी शिनाख्त वहां कराना आवश्यक माना जा रहा है | मेरे पास अपनी पहचान के लिए वोटर आई.डी. कार्ड , पैन कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस , पासपोर्ट , आधार कार्ड , विभागीय आई.डी. कार्ड , राशन कार्ड ( अब निष्प्रयोज्य ) सभी कुछ है | पर शायद बैंक या गैस कंपनी को लगता होगा ,बहुत दिन हो गए चलो इनका मिजाज़ /शक्ल देख लें ,हमारे लायक बचे भी हैं कि नहीं यह अब | 

पर चूँकि यह वैधानिक रूप से आवश्यक कर दिया गया है ,अतः मैंने सशरीर सभी जगह जा कर अपना के.वाई.सी. करा लिया | परन्तु इस प्रक्रिया के दौरान मुझे एक बात यह सोचने को मजबूर होना पड़ा कि मूलतः के.वाई.सी. का उद्देश्य बहुत पुराने हो चुके संबंधों को नवीनीकृत करना है और बेहतर सम्बन्ध बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल है , इसका प्रयोग तो मानवीय संबंधों में भी किया जाना चाहिए | 

बचपन से लेकर अब तक हम लोग न जाने कितने लोगों के संपर्क में आते हैं और अक्सर कुछ ख़ास लम्हों और घटनाओं को याद करते रहते हैं | बहुत से रिश्ते और रिश्तेदार ऐसे भी हैं जिनसे मिले मुद्दत हो गई | उनको देखने और स्वयं को उन्हें दिखाने का मन होता है | अगर इसे कुछ यूं कहे कि संबंधों में भी 'के.वाई.सी.' कराने की आवश्यकता होती है तब अतिश्योक्ति न होगी | लगता है वर्ष में कम से कम एक बार १०/१५ दिनों का अवकाश लेकर पुराने लोगों से मिल कर 'के.वाई.सी.' अवश्य करा लेना चाहिए | निश्चित ही उसका आनंद कुछ और होगा |

इश्क ,मोहब्बत में तो 'के.वाई.सी.' बहुत जल्दी जल्दी कराते रहना चाहिए नहीं तो कनेक्शन कब कट जाये, वह भी बिना पूर्व सूचना के ,पता नहीं चलेगा | दाम्पत्य जीवन में भी करवा चौथ , कजरी तीज सरीखे व्रत/त्यौहार 'के.वाई.सी.' कराने की ही तर्ज पर प्रोग्राम किये गए हैं | बच्चों के जन्म दिन मनाने की परम्परा भी मूलतः बच्चों की 'के.वाई.सी.' कराने सामान ही होती है | आने वाले लोगों और उनसे मिली गिफ्ट से वह भी अपना 'के.वाई.सी.' पूर्ण समझ लेते है | 

कभी कभी आईने में स्वयं को देखता हूँ तो स्वयं को ही अजनबी सा पाता हूँ | बचपन में कितनी सादगी ,कितनी शुचिता और सबके प्रति सम्मान और स्नेह था और अब बस "निजता" के सिवाय कुछ नहीं | इतना परिवर्तन कैसे हो जाता है खुद में ही | शायद अगर स्वयं से ही स्वयं का 'के.वाई.सी.' कराता रहता तब इतना परिवर्तन न होने पाता |

ईश्वर से भी कभी कभी समय निकाल कर पूजा / प्रार्थना के द्वारा 'के.वाई.सी.' कराते रहना चाहिए जिससे उनके पास हमारा पूर्ण सही विवरण उपलब्ध रहे और हमारे विषय में जानकारी के आभाव में असमय हमारा कोई नुकसान या हानि न हो जाए |

                 बस मानवीय संबंधों में प्रयुक्त के.वाई.सी. का अर्थ "know your character" होना चाहिए ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. :-) बहुत बढ़िया....
    विषय के लिए तो दाद हाज़िर है....
    हर पोस्ट का विषय कुछ "हट के" होता है...

    सादर
    अनु

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    1. कुछ 'हट के होने का' मजा ही कुछ और है | बहुत बहुत आभार आपका |

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  2. सच रिश्तों में भी के वाई सी अनिवार्य कर देना चाहिए .... बहुत बढ़िया लेख ....

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  3. क्या बात क्या बात ...जीवन दर्शन झलक रहा है आज तो सहज से आलेख में.
    बात गज़ब कही है .बहुत जरुरी है रिश्तों में के वाई सी.

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    1. अरे ,कोई दर्शन वर्शन नहीं है | बस ऐसे ही जो समझ आता है ,लिख डालते हैं | आप लोग उत्साहित कर देते हैं ,अच्छा लगता है |

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  4. के वाई सी के अन्य उपयोग रोचक है .
    मनोरंजक तरीके से गंभीर बात कही !

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    1. आप लोग पसंद कर लेते हैं ,बस हो गया मेरा के.वाई.सी. |

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  5. कल 18/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. :)))... आपका विचार अति उत्तम है, बस ४थे पेराग्राफ की पहली लाइन ज़रा रिस्की है !:P
    रोचक रचना...हमेशा की तरह !:-)
    ~सादर

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  7. anothey vishyon par likhte hai aap...bahut pasand aaya... is baar lko aaungi to KYC jaroor karwaungi

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    1. पिछली बार की तरह तो नहीं !! फिर भी हम पांवड़े बिछाए बैठे हैं ,आप आयें तो सही |

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  8. क्या बात कही गई है इस लेख के माध्यम से

    स्वागत योग्य .... पहले स्वतः के के वाय सी कराने की ज़रुरत है ....

    बहुत सुन्दर

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  9. @ दाम्पत्य जीवन में भी करवा चौथ , कजरी तीज सरीखे व्रत/त्यौहार 'के.वाई.सी.' कराने की ही तर्ज पर प्रोग्राम किये गए हैं |

    यहाँ क्या सिर्फ एकतरफा के.वाई.सी.'की जरूरत पड़ती है??:)

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    1. कोई भी व्रत / त्यौहार एकतरफा नहीं होते , रश्मि जी | इन मौकों पर बहुत सारी पुरानी स्मृतियाँ रिफ्रेश हो जाती हैं | मैंने तो 'परस्पर सम्बन्ध' मजबूत और स्नेहिल बनाने की बात के परिप्रेक्ष्य में यह लिखा है | आप ने अन्यथा ले लिया शायद |

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    2. हमने बिलकुल अन्यथा नहीं लिया अमित जी, बस आपका ध्यान इस तरफ दिलाया कि आपने पतियों की तरफ से अपेक्षित 'के.वाई.सी.' का जिक्र नहीं किया।

      लिख सकते थे, 'वे पत्नी के लिए नयी साड़ियाँ लाते हैं, मेहन्दी लगवाने लेकर जाते हैं आदि आदि :)

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    3. हाँ ! मैंने ज़िक्र नहीं किया ,परन्तु मेरा मंतव्य पतियों की ओर से किया जाने वाला के.वाई.सी. ही था और उसमें गिफ्ट /मेहँदी/श्रृंगार की ही बात निहित थी | सबूत स्वरूप आप मेरी पिछली पोस्ट "इस बार करवा चौथ पे "पर देख सकती हैं | आप इतनी रूचि से मुझे पढ़ती हैं इसके लिए बहुत बहुत आभार |

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    4. @मैंने ज़िक्र नहीं किया ,परन्तु मेरा मंतव्य पतियों की ओर से किया जाने वाला के.वाई.सी. ही था और उसमें गिफ्ट /मेहँदी/श्रृंगार की ही बात निहित थी |

      अगर जिक्र नहीं होगा तो कैसे पता चलेगा जरूरी नहीं कि सबने पिछली पोस्ट पढ़ी हो ,

      मैं जो भी पढ़ती हूँ रूचि से और ध्यान से अन्यथा पढ़ती ही नहीं .

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    5. यही तो निवेदिता भी कहती है ,आप ज़िक्र नहीं करते तो हम कैसे जाने आप फ़िक्र करते हैं | मन के भीतर क्या है बोलना चाहिए | परन्तु यह गलती मुझसे होती रहती है ,न कहने / बताने वाली और हर बार मुझ पर दोषारोपण हो जाता है | वास्तव में मैं जो कुछ भी और जैसा भी लिखता हूँ असल में भी मेरी वही फितरत है | कृत्रिमता मुझसे होती नहीं ,क्या करूँ !!

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  10. हम तो अपने बारे में बताते बताते पक गये हैं।

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