दिनांक : २६.०८.२०१२ , ट्रेन : स्वर्ण शताब्दी , कोच नंबर-सी ५
ठीक १२.३५ पर ट्रेन लखनऊ के प्लेटफार्म नंबर -१ पर ठहरती है | मै एक ऐसे शख्स को रिसीव करने आया था ,जिनसे पिछले दो वर्षों से ब्लॉग और फेसबुक की आभासी दुनिया में बातचीत तो होती रही, परन्तु सच में एक दूसरे से शत-प्रतिशत अनजान | मेहमान विदेशी था ,सो संकोच भी मेरा अपने चरम पर था | कैसा होगा , क्या पसंद हो , क्या नापसंद हो | जन्मदिन पर मेरे उनका फोन आ गया था और तब उन्होंने बताया था कि एक कार्यक्रम के सिलसिले में उन्हें बतौर मुख्य अतिथि मेरे शहर में आना है सो मेरे लिए कहीं रहने की व्यवस्था किसी होटल में मैं करा दूँ | तभी मैंने कह दिया था कि मेरे रहते होटल में रुकने का प्रश्न ही नहीं उठता | यह बात मैंने कैसे और किस अधिकार से कह दी थी यह आज तक समझ में नहीं आया | खैर उन्होंने फोन पर ही कहा ,नहीं मै आपके यहाँ ही आऊँगी । आप खिलाना ,पिलाना , शहर घुमाना पर ठहरेंगे किसी होटल में ही | यह बात पहली अगस्त की है ,जब जन्मदिन पर बात हुई थी | मैंने एक विदेश में रहने वाली महिला को अपने यहाँ आने का निमंत्रण तो दे दिया था परन्तु थोड़ा मैं असहज भी महसूस कर रहा था कि उनकी व्यवस्था में कहीं कोई कमी न रह जाए |
डरते डरते यह बात मैंने अपनी पत्नी को बताई कि मैंने तुमसे बगैर पूछे एक निमंत्रण दे दिया है | बिना असहज हुए ही वे तुरंत हामी की मुद्रा में आ गई | अब अगला प्रस्ताव पत्नी के सामने मैंने यह रखा कि चूंकि आमंत्रित मेहमान एक महिला है अतः बेहतर होगा कि उन्हें रिसीव करने स्टेशन तुम भी चलो | इस पर उन्होंने कहा कि सोच तो मै भी यही रही थी पर चाहती थी आप कहें तो चलने को |
ट्रेन के ठहरने से पहले ही मै कोच नंबर सी-५ के सामने अपने को स्थापित कर चुका था | ब्लॉग और फेसबुक पर उनके चित्र देखते देखते उनका चेहरा लगभग परिचित सा हो चुका था | अतः उन्हें देखते ही मैंने बरबस अपना दायाँ हाथ ऊपर उठा दिया | अब तक शायद वह भी पहचान चुकी थीं और मेरे साथ मेरी पत्नी को देख उम्मीद से अधिक आश्वस्त भी लग रही थी | उनके साथ उनका एक छोटा सा सूटकेस पहियों वाला था , जिसे मैंने अपने हाथ में शिष्टाचारवश लेना चाहा पर उन्होंने मना कर दिया और मैं भी अधिक जोर नहीं दे पाया क्योंकि मैं अपना सामान तो कभी स्वयं उठाता नहीं और पत्नी के सामने यह परोपकार करने की जहमत नहीं उठा सकता था क्योंकि भविष्य में इस बात को 'कोट' किये जाने की पूरी संभावना रहती | खैर प्लेटफार्म से बाहर निकल कर मै उन्हें अपनी कार से अपने घर ले आया | कार में यदि तीन लोगों को बैठना हो तब समस्या यह होती है कि अगर दो लोग पीछे बैठ जाएँ तो चलाने वाला ड्राइवर समान लगने लगता है और अगर मेहमान को पीछे बिठा कर पति-पत्नी आगे बैठ जाए तब मेहमान neglected फील करता है | यहाँ पुनः मेरी पत्नी अपने विवेक का परिचय देते हुए और मेरी समस्या को हल करते हुए स्वयं तो पीछे बैठ गई और मेहमान को आगे बिठा दिया और दलील यह दी कि आप बाहर विदेश से आये हो आपको बाहर का दृश्य देखना समझना अच्छा लगेगा जो आगे की सीट से बेहतर संभव होगा |
घर पहुँच कर बहुत जल्दी ही हम सब सामान्य से हो गए और ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम लोग आपस में पूर्व परिचित हों | कारण क्या था इसका, आज तक अज्ञात है | चाय वगैरह और उसके बाद भोजन के बाद उन्होंने शहर से कुछ मशहूर चिकन के कपडे खरीदने की इच्छा व्यक्त की | अब तक तो मैं अपने को 'जिन' समझने लगा था कि कोशिश करूँ कि जो कुछ भी वह कहे मैं कर दूं | इसी क्रम में हम लोग हजरतगंज गए परन्तु रविवार होने के कारण अधिकतर दुकाने बंद थीं फिर भी जनपथ में २/३ दुकाने खुली थी | उन्होंने कुछ कुर्ते वगरह वहां से लिए ,इसी बीच मेरी जानकारी में आया कि थोड़ी दूर पर एक बेहतर दुकान और है जिसके यहाँ सामान तो अच्छा है ही, थोड़ा मेरा पूर्व परिचय भी था वहां | परन्तु एक समस्या यह थी कि इसी बीच मैंने अपनी कार थोड़ी दूर पर पार्किंग में लगा दी थी | तब तक बारिश भी आ गई |हम तीनो लोग दो रिक्शे पर बैठ कर बौछारों का आनंद लेते हुए अगली दुकान पर पहुंचे | वहां दुकानदार ने मेरे पूर्व परिचय का सम्मान करते हुए हम लोगों को 'काफी' पिलाई और उन्होंने जी भर के वहां खरीददारी भी की | वहां से फिर हम लोग रिक्शे से ही हल्की हल्की बारिश में वापस कार पार्किंग में आये | इस तरह मैंने उनको एक चार्टर्ड रिक्शे में भी घुमा दिया | वहां से हम लोग शहर का मशहूर इमामबाडा देखने गए जहां तस्वीरें भी उतारी गई | लखनऊ की गोमती पर सबसे पुराना बना पुल जो 'लाल पुल' के नाम से जाना जाता है उसे भी देखा | अब तक हम लोग थक भी चुके थे सो घर वापस चल दिए | बारिश लगातार हो रही थी ऐसे में मैंने ताजे भुने भुट्टे खाने का प्रस्ताव रखा जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया | भुट्टे खाते खाते हम लोग घर पहुँच गए | वहां बारिश में ही कार से उतरने में उनका मोबाइल नीचे पानी में गिर गया | जो काफी मशक्कत के बाद ढूंढने से मिला पर उसका मिलना न मिलना अब बेमानी ही था क्योंकि अब वह अन्दर तक पसीज गया था और उसकी बोलती बंद हो चुकी थी | अपने वतन से दूर अगर किसी का मोबाइल बिगड़ जाए तो इससे भयावह स्थिति और कोई नहीं हो सकती | तत्काल मौके के मिजाज़ को समझते हुए मैंने अपना एक पुराना मोबाइल ढूंढ़ कर उनका 'सिम' उसमें डाल कर उसे चालू कर दिया | उनका फोन इस दरमियाँ लगभग आधे घंटे ही बंद रहा होगा पर तब तक उस पर बीसियों काल आ चुकी थीं |
मेरे घर के पास ही काफी शाप पर उन्हें किसी डाक्टर दंपत्ति के बुलावे पर भी जाना था | उनका सिम जिस मोबाइल में डाला गया वह मोबाइल पूर्णतया डिस्चार्ज था | अतः वे काफी शाप बिना मोबाइल लिए ही चली गई | अब स्थिति बदल चुकी थी | एक अपरिचित विदेशी मेहमान अब मेरी जिम्मेदारी था | उन्हें काफी शाप से लौटने में थोड़ा विलम्ब हुआ और उनसे संपर्क का कोई जरिया भी नहीं था , वह डाक्टर भी हमारे लिए अनजान था | हम लोग उस क्षण थोड़ा चिंतित भी हो गए थे और मैं पुनः उन्हें देखने जाने वाला ही था कि बेल बज उठी थी और हम लोगों ने चैन की सांस ली | बातचीत के दौरान अब तक वह हमारे घर में ही रुकने को सहमत हो गई थी और इस बात से उन्होंने अपने परिवार को अवगत भी करा दिया था | फिर भी घर वाले तो सशंकित रहते ही हैं कि जिसे कभी देखा नहीं कभी जाना नहीं उसके यहाँ रात्र-निवास का क्या मतलब |
आभासी दुनिया के कुछ अन्य मित्र भी मेरे निमंत्रण पर मेरे घर आ गए और डिनर हम लोगों ने साथ ही एक पास के होटल में लिया | उस रात काफी देर तक हमारे घर में ठहाके गूंजते रहे थे |
अगले दिन सुबह उठकर बस नाश्ता वगैरह कर हम लोग कार्यक्रम स्थल पहुँच गए थे | चूँकि मेरे यहाँ ठहरने वाला मेहमान ही उस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था सो लोग मुझे अत्यंत आश्चर्य मिश्रित भाव से देख रहे थे | सारे दिन कार्यक्रम चलता रहा , वह पुरस्कार पे पुरस्कार बटोरती रहीं और शाम ७ बजे तक हम लोग वापस घर आ गए थे | इसी रात की ट्रेन से उनकी वापसी भी थी | मैं तो भागादौड़ी में उनसे बिलकुल भी बात नहीं कर पाया | हाँ ! इच्छा तो थी कि वह थोड़ा और ठहरती परन्तु सारे कार्यक्रम पूर्व निर्धारित थे जिसमे परिवर्तन संभव नहीं था | इस बीच उनकी दोस्ती मेरी पत्नी से इस कदर हो गई कि, आईं थी मेरी मेहमान बनकर और लौट रही थी उनकी दोस्त बन कर |
उनकी ट्रेन कैफ़ियात एक्सप्रेस थी जो रात के २३.१५ बजे छूटती है | मैं उन्हें छोड़ने स्टेशन गया और लखनऊ जंक्शन के प्लेटफार्म नम्बर १ पर ट्रेन के विवरण की प्रतीक्षा कर रहा था | तभी अकस्मात पता चला कि वह ट्रेन तो छोटी लाइन (एन. ई. आर.) के स्टेशन से छूटती है | ( छोटी लाइन तो बड़ी लाइन में परिवर्तित हो चुकी है परन्तु अभी भी उसे छोटी लाइन का ही स्टेशन कहा जाता है ) भागते भागते हम लोग छोटी लाइन के स्टेशन पहुंचे | वहां पहुँचते ही बत्ती गुल हो गई | उसी अँधेरे में जानकारी हुई कि ट्रेन तो आ चुकी है और प्लेटफार्म नंबर २ पर खड़ी है | छोटी लाइन पर ट्रेन बहुत आगे खड़ी होती है और ए. सी. का डिब्बा एकदम आगे होता है | तेजी से भागते हुए ट्रेन के डिब्बे तक पहुंचे | वहां डिब्बे पर चार्ट नहीं लगा था | जल्दीबाजी में उन्होंने टिकट देखा और अपनी उम्र की संख्या को सीट नंबर समझ उसी पर जम गईं | तब तक एक सज्जन आये और ध्यान से टिकट देखकर उन्होंने हम दोनों ही का भ्रम दूर कर दिया | इतनी देर में अब केवल ५/७ मिनट रह गए थे ट्रेन छूटने में | जल्दी जल्दी मैंने दूसरे कोच में कंडक्टर को ढूंढा पर वह होता तब तो मिलता | मैंने कहा अब आप कहीं भी बैठिये मैं कुछ करता हूँ | तब तक उन्होंने स्वयं ही देखा कि टिकट में सीट नंबर अंकित था जो उन्हें ही आबंटित थी | फिर उसी सीट पर उन्हें बिठा कर एक बोतल ठंडा पानी देकर बस उतर ही रहा था और ट्रेन चल दी थी | इस आपाधापी में उन्हें विदा करते समय ठीक से न कुछ कह पाया, न देख पाया |
और कैफ़ियात एक्सप्रेस चली गई ,पर बहुत सारी स्मृतियाँ दे गईं |
दिनांक २७.८.२०१२ ,समय २३.१५ |
न भूलेगी वह बरसात की रात..... :-)
जवाब देंहटाएंलखनऊ की तहजीब और मेहमाननवाजी को आपने बरक़रार रखा -यही उम्मीद थी आपसे ...
न किसी का नाम लिया और दुनिया की नज़रों से बचाने को कोई फोटो शोटो भी नहीं दिया .....
यह आलम दीवानगी का ....समझा जा सकता है :-)
ये आलम शौक का देखा न जाए, वो बुत या खुदा देखा न जाए.....बहुत रश्क है आपसे बोले तो एनवी :-)
तमाम बातों को हम भी कोट करेंगे कभी बातचीत में। :)
दोस्त पत्नी के भी दोस्त बनकर गये। ये तो ऐसा ही हुआ कि कोई एफ़.डी. एक ही दिन में मैच्योर हो जाये।
सारे फोटो यहां लगाने चाहिये।
बहुत अच्छा लिखा है।
ये दोस्ती तो रिजर्व बैंक के लॉकर जैसी हो गयी है .... :)
हटाएंयह तो हम भली भाँति जानते हैं कि आप कहीं भी और कुछ भी 'कोट' कर सकते हैं |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं@ निवेदिता !! एक गीत की एक पंक्ति याद आ रही है न जाने क्यों :):)
हटाएं"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई :):).
निवेदिता से रश्क हो रहा है मुझे |
हटाएं:):)...
हटाएंरोचक वर्णन, असहज भावों को सहज रूप से बता दिया, ब्लॉगजगत के लोगों से मिलने पर लगता है कि जान पहचान बहुत पुरानी है..
जवाब देंहटाएंआप तो लखनऊ आकर लौट गए , बिना इत्तिला के | मिलने पर देखते,हम लोग परिचित लगते हैं या अपरिचित |
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंइस 'स्माइली' का अर्थ है , मन ही मन मंद मंद मुस्कुराना कि, जानते तो हम भी हैं |
हटाएं:):)बहुत रोचक वर्णन .... आपके खास मेहमान सच ही खास होंगे .... मोबाइल खराब होने की घटना ने मेहमान का खुलासा तो कर ही दिया है ... कभी लखनऊ आना हुआ तो आपसे और निवेदिता जी से मिलने की इच्छा बलवती रहेगी ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,हमे भी आपका इंतज़ार है ...:)
हटाएंआपका स्वागत है |
हटाएंसुन्दर वर्णन किया है आपने . एकदम जीवन्त और रोचक
जवाब देंहटाएंऔर चाकलेट तो ललचा रहे है .
जवाब देंहटाएंअभी डिब्बा खुला नहीं है | आ जाइए |
हटाएंओहो, उनके मोबाईल से सारे नंबर उड़ गए.. फिर तो मैं फिर से उन्हें अपने अनजान नंबर से फोन करके तंग कर सकूंगा. :-)
जवाब देंहटाएंआइडिया अच्छा है...|
हटाएंgreat story-telling.
जवाब देंहटाएंयाद न जाए बीते दिनों की........क्या चित्र खींचा है जीजाजी! और भाव तो, आये-हाय....
जवाब देंहटाएंअपनी तो कट्टी है आपकी इन मेहमान से.....
जवाब देंहटाएंसो नो कमेंट्स...
सादर
अनु
उनका नेट कार्ड खराब है अभी | नेट पर नहीं आ पा रही हैं | इसीलिए शायद आपकी शिकायत अभी ज्यों की त्यों है |
हटाएं...सौभाग्य से हम दिल्ली से गए चार लोग भी उसी ट्रेन में थे,पर नाम मैं भी नहीं बताऊँगा !
जवाब देंहटाएंआपसे मिलकर अच्छा लगा |
अच्छा तो हमें भी लगा,और मेरा तो उद्देश्य ही यही था , आप सबसे मिलने का |
हटाएंबहुत ही रोचक ढंग से लिखा है आपने...चूँकि हमें कुछ अता पता नहीं है लिहाज़ा महमान का नाम चाहते हुए भी नहीं बूझ पाए...आप बहुत अच्छे महमान नवाज़ हैं ये तो पता चल गया...अगर कभी लखनऊ आया तो आपके साथ एक कप चाय पक्की...पिलायेंगे ना?
जवाब देंहटाएंनीरज
स्वागत है आपका |
हटाएंपरिचय तो मेरा तुमसे केवल दो दिन का ,
जवाब देंहटाएंपर सम्बन्ध पुराना है उतना ,दूर बसे प्रीतम से जितना पाती का ,......बहुत एब्ज़ोर्बिंग गुमसुम से हम भी पढ़ते गए और एक आकस्मिकता के साथ कैफियत एक्सप्रेस चली भी गई -न जी भरके देखा ,न कुछ बात की ,बड़ी आरजू थी ,मुलाक़ात की ,.यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
गुमनाम हैsssss कोई
जवाब देंहटाएंatul ji yah dosti aur iska jjba naman , bahut kam hi acche dost mil pate hai is aabhasi duniya me bhi hamen acche doat mil jate hai .aur aapki mehamaan nabaji .........bahut khoob hamare vatan ki yahi pahachaan hai /............yah to ek sundar sa tohafa ho gaya dosti ka
जवाब देंहटाएंयह अतुल कौन है ?????
हटाएंआपने अपना अतुल कब करा लिया.. :P
हटाएंकभी कुछ पल जीवन के लगता है कि चलते चलते कुछ देर ठहर जाते हैं....:):)..
जवाब देंहटाएंफिर उन पलों में मन ठिठक कर ठहरना चाहता है | परन्तु वे पल यह होने नहीं देते | बस हौले से आगे बढ़ जाते हैं और शेष रह जाती हैं 'स्मृतियाँ ' कुछ, अनमोल सी |
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।।।
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जवाब देंहटाएंबहोत मज़ा आया पढ़कर...सच कहूं ...मैंने शिखा की एक तस्वीर देखि थी जो उन्होंने ब्लॉग पर डाली थी ...जिसमें वह निवेदिताजी की गोद में सर रखकर लेटी हैं....उसके नीचे कैप्शन था ...एक बहुत ही प्यारी इंसान के साथ ....(या शायद ऐसा ही कुछ )...जलन हुई थी मुझे वह तस्वीर देखकर..लेकिन उतनी ही उत्सुकता भी बढ़ गयी थी निवेदिताजी से मिलने की ....आज जब जाना की वह पहली भेंट थी ...तब तो उत्सुकता और अधिक बढ़ गयी...:)
अब तक तो मैं अपने को 'जिन' समझने लगा था ... :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर ... आपकी और निवेदिता जी की खातिरदारी आज उन्हें (शिखा जी) भी बरबस याद आ रही होगी .... शुभकामनाएँ
भैया, इसमें कितना कुछ तो जाना-पहचाना लग रहा है...| आप लोगों ने एक्शन रीप्ले तो नही किया था...:P
जवाब देंहटाएंवैसे निवेदिता भाभी के लिए मेरी ओर से भी वही गाना...शिखा जी जो गा गई ऊपर...:D :P
आपके लिए भी गा ही देते हैं...भैया मेरे...छोटी बहन को न भुलाना...:)
ऐसे नहीं भूलने वाले हम आपको ,और सच हमें भी लग रहा था जैसे घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही हो ।
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