बिजली का उत्पादन , पारेषण और वितरण एक समग्र विषय है और जो इस क्षेत्र से नहीं जुड़े हैं उनके लिए इसे समझना जटिल भी | परन्तु चूँकि बिजली आम आदमी के जीवन में इतना रच बस गई है अतः इस सिस्टम को आम फहम जबान में समझाने का यह एक प्रयास मात्र है |
बिजली बनाने के लिए मौलिक रूप से एक चुम्बकीय क्षेत्र की आवश्यकता होती है और उस चुम्बकीय क्षेत्र के मध्य गुड कंडक्टर के बंद परिपथ को बस घुमाना मात्र होता है | जिस घूर्णन गति से घुमाते हैं उसे ही फ्रीक्वेंसी कहते हैं | हमारे देश में यह गति ३००० आर.पी.एम. , फ्रीक्वेंसी ५० हर्ट्ज़ होती है |
बिजली घर का वर्गीकरण बस इसी तथ्य पर आधारित होता है कि उस बंद परिपथ को किस प्रकार से घुमाया जा रहा है | बंद परिपथ जेनरेटर कहलाता है और उसे घुमाने के लिए उससे टरबाईन जुडी होती है | अब अगर उस टरबाईन को पानी के दबाव से घुमाते हैं तब वह जलविद्युत संयत्र कहलाता है और अगर उसे भाप से घुमाते हैं और भाप अगर कोयले से बन रही है तब तापीय बिजली घर कहलायेगा और अगर भाप परमाणु संयत्र से बन रही है तब वह परमाणु बिजली घर कहलाता है | इसके अलावा अगर वही घुमाने का कार्य विंड मिल द्वारा किया जा रहा है तब वह विंड एनेर्जी कहलाती है | समुंदरी लहरों के पोटेंशियल को भी प्रयोग कर tidal wave एनर्जी का भी प्रयोग आरम्भ हो गया है | जल विद्युत् में पानी का दबाव प्राप्त करने के लिए ही नदियों पर डैम का निर्माण करते हैं |
किसी बिजली घर में उत्पादन शुरू करने के लिए आरम्भ में उसे अपनी auxiliary machines को चलाने लिए भी बिजली की आवश्यकता होती है | बहुत छोटे छोटे बिजलीघरों में यह आवश्यकता डीज़ल सेट से पूरी हो जाती है परन्तु बड़े बिजली घरों में उन्हें चलाने के लिए शुरू में एक छोटे से जिले के बराबर की बिजली की आवश्यकता होती है | यह आवश्यकता 'जूस' कहलाती है | अधिकतर जूस जलविद्युत घरों से प्राप्त होता है |
बिजली उत्पादन होते ही उसे अत्यंत उच्च वोल्टेज वाली लाइनों से वितरण के लिए प्रेषित किया जाता है | जिन लाइनों से हम बिजली भेजते हैं , उन्ही लाइनों से आवश्यकता पड़ने पर लेते भी हैं | धीरे धीरे सारे बिजली घर उत्पादन और वितरण करने के लिए आपस में एक तंत्र से जुड़ जाते हैं जिसे 'ग्रिड' कहते हैं | ग्रिड से जुड़े सभी बिजलीघरों की फ्रीक्वेंसी एक सी होती है , ५० हर्ट्ज़ | अब इस ग्रिड से अगर कोई बिजली घर अपना उत्पादन करना बंद करता है परन्तु ग्रिड पर लोड वही रहेगा तब वाजिब है फ्रीक्वेंसी घटने लगेगी और चूँकि पूरा तंत्र उस फ्रीक्वेंसी के लिए ही डिज़ाइन किया गया है तब ऐसी स्थिति में सिस्टम को नुक्सान हो सकता है | अतः जैसे ही उत्पादन कम होता है , उसी अनुपात में प्रयोग की जा रही बिजली के लोड को भी कम करना पड़ता है और ऐसे ही विपरीत स्थिति में यदि उत्पादन बढ़ता है तब हमें तत्काल लोड बढ़ाने की आवश्यकता होती है अन्यथा फ्रिक्वेंसी बढ़ जायेगी और वह सिस्टम के लिए डिज़ाइन के कारण घातक होता है |
इस क्षेत्र की सबसे बड़ी इमरजेंसी 'ग्रिड' फेल होने पर ही आती है | ग्रिड फेल होने के मुख्यतः दो ही कारण है , पहला , अगर सिस्टम से जुड़े किसी बड़े बिजली घर का उत्पादन अचानक शून्य हो जाये और उस अनुपात में संयोजित भार तत्काल कम न किया जा सके | दूसरा , सिस्टम से जुडी कोई बड़ी लाइन जिस पर कम से कम १००० मेगावाट या उससे अधिक भार जुड़ा चल रहा हो , किसी कारण वश (फाल्ट) ट्रिप (अलग ) कर जाए ,बस इन्ही दो दशाओं में ग्रिड फेल हो सकता है | १५ / २० वर्षो पहले तो ग्रिड अधिक डिस्टर्ब रहता था परन्तु अब तो ऐसी स्थिति में क्षेत्र वार ग्रिड अपने को इस फाल्ट से स्वयं अलग कर लेते हैं जिसे आइलैन्डिंग कहते हैं |
अभी जो घटना ग्रिड फेल होने की हुई थी उसमे आगरा- ग्वालियर लाइन जोड़ते समय फाल्ट आया था जिसने ग्रिड फ्रिक्वेंसी को डिस्टर्ब किया और फाल्ट ट्रिगर हुआ जिससे कैसकेडिंग इफेक्ट से सारी मशीने बंद हो गई थी | ओवरड्राल मैन मेड फाल्ट है , इसमें सिस्टम का कोई दोष नहीं | इसीलिए ओवरड्राल पर जुर्माना लगाने का भी प्राविधान है |
एक बार ग्रिड फेल होने पर सारी मशीने बंद हो जाती हैं और बहुत बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़ता है | एक तो जो मशीने चलते चलते बंद हो जाती हैं उनके रोटर चूँकि बहुत वजनी और गर्म होते हैं उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था से घुमाते रहने पड़ता हैं नहीं तो वह डैमेज हो सकते हैं | सारी बियरिंग्स को ठंडा रखने ले लिए तेल के पम्पो को भी डीज़ल सेट और बैटरी से चलते रहना पड़ता है | अब चूँकि ऐसी इमरजेंसी कभी कभार होती है अतः लोगों को इसका अनुभव भी नहीं होता और बहुधा काफी नुकसान उठाना पड़ता है | ग्रिड फेल होने पर सबसे पहले जल विद्युत् संयत्र ही चलाये जाते हैं क्योंकि उन्हें तत्काल चलाना सरल होता है फिर उस बिजली घर की बिजली को बड़े बिजली घरों को जूस के तौर पर दी जाती है तब वहां की मशीने चल पाती हैं |
अब राष्ट्रीय ग्रिड से कौन सा राज्य कितनी बिजली लेगा या ले रहा है इसकी निगरानी की आवश्यकता होती है जिसमे चूक होने पर ही असंतुलन होता है और अक्सर इसके कारण राजनैतिक भी ज्यादा होते हैं |
पिछले २५ वर्षो से मैं इस सरकारी महकमे में काम कर रहा हूँ | उत्पादन के क्षेत्र में ओबरा और टांडा परियोजना में लगभग ५ वर्ष काम किया और फिर वितरण के क्षेत्र में आ गया तबसे वितरण के ही क्षेत्र में हूँ और अभी लखनऊ में हूँ । वितरण के क्षेत्र में उपभोक्ताओं से इंटरफेस और बढ़ जाता है जो कठिन भी है और एक चुनौती भी क्योंकि उपभोक्ताओं की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं और बिजली की उपलब्धता बहुत कम | हमारे देश में इस क्षेत्र में अभी बहुत कार्य किया जाना है और लोगों को भी समझने की आवश्यकता है कि इसका प्रयोग अत्यंत सावधानी , ईमानदारी और किफायत से करना चाहिए |
" greed for more power fails GRID " ,whether this power is electrical, political ,economical or social , it is applicable everywhere in larger perspective .
i read it all in the hope of a hidden poetry...
जवाब देंहटाएं:-)
regards
anu
अगली पोस्ट में ....कविता होगी |
हटाएंसुविधाओं की बाढ़ ने बेवजह बिजली का उपभोग बाधा दिया है ....ऊपर से किफ़ायत को लेकर हमारी लापरवाही भी कुछ कम नहीं
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख..
जवाब देंहटाएंइतने सरल तरीके से पहली बार किसी ने समझाया। गर्दन किसकी टाँगी जाये इसके लिये तब?
जवाब देंहटाएंकल 05/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ साझा करता सुंदर आलेख...
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
Dear Amit Sir,
जवाब देंहटाएंIt is Important knowledge for us..
Thanks for explaining Electric Distribution System.
Regards.