लम्हों को लम्हों में,
गूँथते रहें,
और,
अपना आशियाना,
उन्हीं के इर्द गिर्द,
बुनते रहे |
मगर वो थे कि,
हमारी साँसों का,
हिसाब करते रहे |
(ये शायद इंतिहा थी उनकी चाहत की),
हम साथ चलते तो रहे,
पर दूरियां बढ़ती रहीं,
कदम तो थे दोनों के,
नपे तुले मगर,
रास्ते ही अक्सर,
जुदा होते रहे |
अब दूरियां,
इतनी भी नहीं,
कि,ना मिट सके |
मगर,
दरमियाँ खड़ी है,
एक प्राचीर वक्त की,
और शायद,
यह सच है कि,
भेद पाना इसे,
अब आसान नहीं |
हाँ ! अगर कुछ,
कडवे लम्हे,
खींच लिए जाये,
वक्त की इस प्राचीर से,
तब मुमकिन है,
ढह जाए दीवार,
बीच की |
पर,
इसके लिए भी,
पकड़ना होगा,
ईंट उन लम्हों की,
दोनों सिरों से |
काश !!!!!!!!!
काश !!!!!!!!!
सुंदर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !!
वक़्त की दूरियों को बखूबी प्रस्तुत किया है आपने... बहुत ही सुन्दर....
जवाब देंहटाएंहाँ ! अगर कुछ,
जवाब देंहटाएंकडवे लम्हे,
खींच लिए जाये,
वक्त की इस प्राचीर से,
तब मुमकिन है,
ढह जाए दीवार,
बीच की |
पर,
इसके लिए भी,
पकड़ना होगा,
ईंट लम्हों की,
दोनों सिरों से |
bas aham ko bhul jana hai, phir to pakad majboot hogi hi ...
सुंदर रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर।
जवाब देंहटाएंसादर
waah! kaash jahan se aapne khatm kiyaa hai har wahi se har baat shuru hoti hai
जवाब देंहटाएंजितना जल्दी ही इस दीवार को खींच लेना चाहिए ... नहीं तो अहम की दीवार इतनी ऊंची हो जाती है की वापस खींचना संभव नहीं रहता ... लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंअहम की दीवार को तो खींचना ही होगा नही तो जड मजबूत हो जायेगी………।सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंमन क्या करता नहीं तुम्हारा,
जवाब देंहटाएंपुलक पुराना मिले दुबारा,
झलक दिखाकर ओझल होता,
पलक झपकते ख्वाब इशारा.
anu
सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी,
जवाब देंहटाएंये कविता बहुत पसंद आयी है,
दोनों सिरे हाथ में आ जायें तो जीवन में कितना कुछ मिल जायेगा।
जवाब देंहटाएंbahut sundar amit ji...
जवाब देंहटाएंइसके लिए भी,
जवाब देंहटाएंपकड़ना होगा,
ईंट उन लम्हों की,
दोनों सिरों से |
बस यही तो नहीं हो पता है.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
वाह साब, बड़े दिल से लिखा है आपने..! संवेदन-पूर्ण !
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी भावनाओं की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंहम,
जवाब देंहटाएंलम्हों को लम्हों में,
गूँथते रहें,
और,
अपना आशियाना,
उन्हीं के इर्द गिर्द,
बुनते रहे |
मगर वो थे कि,
हमारी साँसों का,
हिसाब करते रहे |
अगर यहीं तक होती तो क्षणिका बन जाती ....
अगर आप क्षनिकाएं लिखते हों तो भेज सकते हैं 'सरस्वती-सुमन' के लिए
अपनी १०,१२ क्षणिकायें , संक्षिप्त परिचय और तस्वीर ...:))