चाहा था छू लूं तुम्हें,
इंकार किया था तुमने,
रोम रोम से वाकिफ़ हूं अब,
मगर वो बात नही ।
।
।
।
कहीं वो आकर मिटा ना दें ,
इंतज़ार का लुत्फ़,
कहीं कबूल ना हो जाए,
इलतिजा मेरी।
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