"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
ब्याह के पहले,
तुम एक अपरिचित,
वर्षों ब्याह के बाद,
तुम चिर अपरिचित,
कारण-वही चिर परिचित
चाहत तुम्हारी नई सांसों की,
ज़िद मेरी,ज़द मे रहने की
विरासत की सांसो की।
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