शनिवार, 30 नवंबर 2019

.....धुंधलाता गाँव



धुंधलाता गांव
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थोड़ा सा गांव ,शहर क्या गया,
कीमती हो फिर वो अनमोल हो गया।

पगडंडी सी राहों पे रुका था कभी,
सारे शहर का वो रास्ता आम हो गया।

शहर उलझा सा ,उसके पांवो में जब,
जैसे लिपटा हो सेवार, तलाब में अब।

शहर के छोर पर चमके, जब जुगनू कोई
तलाशता हो गांव जैसे, अपनी रोशनी कोई।

©अमित श्रीवास्तव


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