गुरुवार, 27 मार्च 2014

"बेखयाल लम्हा एक ..........."


ख़यालों में तुम्हारे ,
कुछ बेखयाल यूँ थे ,
कि सुर्ख़ियाँ तुम्हारी ,
हम संजोया किए थे ,

वो अक्स था तुम्हारा ,
कि था वह तसव्वुर ,
पलकों को पलकों से ,
यूँ मूंदा किये थे ,

आहट जब हुई ,
ख़ामोशी की तुम्हारी ,
सिहर से गए हम ,
चढ गई थी खुमारी ,

और झांका तुमने जब ,
अंधेरों को रोशनी मिल गई ,
गुमशुदा बैठे थे तन्हा,
लम्हों को ताज़गी मिल गई | 

19 टिप्‍पणियां:

  1. वाह......
    बहुत खूब !!!
    उम्मीद है और पढने मिलेंगी.....शिखा का फरमाइशी प्रोग्राम जारी रहे :-)
    अनु

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  2. "और झांका तुमने जब ,
    अंधेरों को रोशनी मिल गई ,
    गुमशुदा बैठे थे तन्हा,
    लम्हों को ताज़गी मिल गई | "

    भाई साहब ... आप की रचनाओं पर भी अब बिजली विभाग हावी होने लगा है ... ऐसा लगा जैसे किसी पवार कट के बाद का जिक्र कर दिया हो आपने ;)

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    उत्तर
    1. गुस्ताखी माफ ... हो सरकार ... हमारी फितरत से आप बखूबी वकिफ है |

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  3. और झांका तुमने जब ,
    अंधेरों को रोशनी मिल गई ,
    गुमशुदा बैठे थे तन्हा,
    लम्हों को ताज़गी मिल गई |
    बहुत सुंदर.
    नई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां

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  4. लम्हों को ताजगी मिलेगी ही ............. :) आखिरी इत्ती प्यारी सी कविता जो है :)

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  5. सुपर से बहुत ऊपर ! वाह क्या बात है.......

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  6. प्यार और इंतजार----
    एक ऐसी अनुभूति----जो जीने की बयार है.
    सुंदर

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  7. सुन्दर तसव्वुरात की रचना :

    और झांका तुमने जब ,
    अंधेरों को रोशनी मिल गई ,
    गुमशुदा बैठे थे तन्हा,
    लम्हों को ताज़गी मिल गई |

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  8. पहरन-ओ-सरो-पा चहदीवारी ये तिरा दर..,
    शायद फिर लम्हे को सदियों का है इन्तजार......

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