गुरुवार, 22 नवंबर 2012

" कुछ यूँ हैं वो ....."


एक चिराग रौशन ,
करते जैसे कई चिराग ,
खिलखिलाहट भी ,
उनकी यूँ ही कुछ ,
खिला सी देती है ,
तबस्सुम सारे लबों पे ।

मीठी आवाज़ ,
पाक सी उनकी ,
जैसे हो अजान की  ,
इल्म सा कराती ,
वक्त इबादत का |

निगाहें  उनकी ,
तिलिस्म हो जैसे ,
देखती हैं कुछ यूँ ,
कह रही हों  ,
जैसे कोई ग़ज़ल |

खूब सूरत दे खुदा ,
पर इतनी भी न दे ,
कि देखे वे आइना ,
जी भर के ,
और जी न भर पाएँ  |

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब, जब भी उतरती है तो गहरे उतरती है आपकी कविता..

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  2. :):) खूब सूरत दे खुदा ,
    पर इतनी भी न दे ,
    कि देखे वे आइना ,
    जी भर के ,
    पर जी न भर पाएँ |

    खूब सूरत दे खुदा ,
    पर इतनी भी न दे ,
    कि देखे वे आइना ,
    और आईना शर्मा जाए .... बहुत प्यारी रचना

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  3. मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  4. खूब सूरत दे खुदा ,
    पर इतनी भी न दे ,
    कि देखे वे आइना ,
    जी भर के ,
    पर जी न भर पाएँ |

    वाह....

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  5. :)))... वाह !
    क्या खूब ही सूरत होगी उनकी...
    जो कलम के रास्ते इतनी निखर आई... :)
    ~सादर !!!

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  6. वाह जनाब, क्या लिखा है .. बेहद खूबसूरत .. और शब्द भी उतने ही अच्छे पिरोये हैं ..
    सादर
    मधुरेश

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