मंगलवार, 7 अगस्त 2012

" बदसूरत मौत ....एक खूबसूरत की ....."


फूल खुश था,
उन हाथों में जाकर,
हाथ खुश थे,
उसकी ख़ुशबू पाकर |
पर खुशबू,
मुस्काई थी धीरे से,
उड़ जाऊँगी,
सुबह तक मसले फूलों से |
मसले हुए लम्हे,
जब बन गए मसले,
उस फूल के ,
वो हाथ न थे,
कहीं आस पास | 
नाम था फिजा,
उस फूल का,
जो लटकी मिली,
चाँद के सलीब पे |

19 टिप्‍पणियां:

  1. आखरी २ पंक्तियों में कविता की जान है....
    (जिस्में ज़िक्र है किसी की जान जाने का )

    बहुत बढ़िया
    सादर
    अनु

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    1. किसी की जान जाने के ज़िक्र से किसी में जान आ गई |
      आपकी टिप्पणी तो स्वयं में ही कविता बन गई | बहुत खूब | आभार |

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  2. अफसोस जनक घटना पर बहुत अच्छी कविता लिखी है सर!


    सादर

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  3. अत्यंत दुखद घटना सच ही कहा है नेता तो अपने बाप के भी सगे नहीं होते

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  4. बहुत सुन्दर , बधाई.

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  5. एक और फ़िज़ा आज फ़िर सलीब पे लटक गई । बहुत ही दुखद और अफ़सोसनाक

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  6. थड़ा रुक कर, थमकर सोचना होगा महिलाओं को, सबल, जागरूक, सचेत बनना है या सब कुछ होते हुए भी कमज़ोरी का दामन थामे रहना है .....

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