मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

"ऊ ला ला ......."

        
         खाना खाते वक्त हमेशा की तरह मै चुपचाप खाना खा रहा था | मेरी एक बहुत बुरी आदत है कि मै कभी पत्नी के हाथों बनाए किसी व्यंजन में गुण दोष नहीं देखता ,बस एक ईमानदार सरकारी मुलाजिम की तरह सर नीचे किये पूरा परोसा हुआ खाना उदरस्थ कर लेता हूँ | परन्तु ये है कि मानती नहीं ,अक्सर पूछ लेती है कि ,क्यों कैसा बनाया है हमने ? मन ही मन सोचता हूँ ,बनाया तो तुमने खूब है मुझे ,और रोज ही बनाए जा रही हो ,पर चेहरे पर अभूतपूर्व प्रसन्नता लाते हुए कहता हूँ ,वाह तुम्हारा जवाब नही | (यही प्रतिक्रिया मेरी तब होगी ,जब कभी खुदा मुझे मिलेंगे और मेरी पत्नी के बारे में मेरी राय पूछेंगे ) | इसी परंपरा के निर्वहन के तहत आज खाना खाते वक्त इन्होने पूछ लिया ( सरप्राइज टेस्ट की तरह  ) कि कोफ्ते कैसे बने है ? मेरे मुंह से निकला " ऊ ला ला " | वे दौड़ती हुई गई और जल्दी से मुझे पानी लाकर देने लगीं | मैंने कहा ,क्या हो गया ,मैंने पानी तो नहीं माँगा | वे बोली ,आप ही तो मिर्ची लगने के कारण ऊ ऊ कर रहे थे और पानी के लिए ला ला कर रहे थे | मैंने कहा ,धन्य हो भागवान ,अरे मेरा ऊ ला ला कहने का अर्थ था कि कोफ्ते एकदम मस्त बने है ,विद्या बालन की तरह एकदम ऊ ला ला | वे बोली ,आपका दिमाग खराब हो गया है | जबसे ऊ ला ला देख कर आये हैं ,आप डर्टी माइंड वाले हो गये हैं, अब आपको सारी मोटी मोटी लडकियां और औरतें ही भाने लगीं है | पहले मेरा वज़न ज्यादा था ,तो जिम ज्वाइन करा दिया कि दुबली हो जाओ ,अब जब वजन कम हो गया तो "ऊ ला ला " चाहिए |
       मैंने कहा क्या करूँ, पहले करीना का जीरो साइज़ आया ,तब "स्किनी" का फैशन हो गया था | जीरो साइज़ तो इतना हिट हुआ था कि ,मै सब्जी भी जब लाता था ,तो भिन्डियाँ एकदम पतली पतली ,लौकी ,गाजर ,ककड़ी ,खीरे सब एकदम पतले छरहरे ही लाता था  | बस सब्जी वाले से एक ही बात बोलता था ,सब जीरो साइज़ का माल देना ,रेट चाहे जो लगाओ |
       पर अब ऊ ला ला में विद्या बालन को देखने के बाद वज़न से प्यार हो गया है |
       अभी अभी वे एक कप काफी का रख गई हैं ,उसमे झाग ऊपर तक उठा हुआ है ,मुझे तो वह झाग भी फूला हुआ एकदम मस्त ऊ ला ला लग रहा है | पीछे से उन्ही की आवाज़ आ  रही है, पीने के बाद जाकर पहले दूध ले आइये ,तब ला ला करिए ,नहीं शाम को चाय ,काफी कुछ भी की  ला ला का जवाब नहीं दे पाऊँगी | मैं भी तुरंत अपनी पर्सनल विद्या बालन की बात आज्ञाकारी नसीरुद्दीन की तरह मानते हुये दूध लाने जा रहा हूँ,और मन ही मन सोच रहा हूँ आज अभी लौट कर उनसे कहूँगा  ,कभी  बुम्बाट लग कर दिखाओ ना !!!!    

18 टिप्‍पणियां:

  1. ऊ लला ला मजा आ गया ये छोटा सा लेख पढ कर

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  2. बात में बड़ा वजन है, जीरो साइज कभी नहीं सुहाया, कुपोषण जैसा लगता है।

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  3. हा-हा-हा ...
    "ऊ ला ला ......."
    मज़ा आ गया, बहुत सी बातें मेरे मन की हैं।

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  4. बढ़िया लेख बहू दिनों बाद कुछ हट कर पढ़ने को मिला ॥ऊ ला ला ...

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  5. पढ़ लिये हैं। बाकी बम्बाट के बारे में सिनेमा देखकर टिपियायेंगे।

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  6. बढ़िया... ऊ ला ला हो गया अब बुम्बाट भी लिखिए ....:))

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  7. ह्म्म्म्म्म्म्म
    पिछली दो पोस्ट्स से बदला बदला सा रुख है....निवेदिता जी से संपर्क करती हूँ :-)

    सादर
    अनु

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    1. आदरणीया अनु जी एवं वाणी जी ,
      नहीं ऐसा तो कुछ नहीं हैं | हाँ ! पर हमेशा एक सा मन हो यह भी तो सम्भव नहीं | न चाहते हुए भी मन कभी कभी कोई लम्हा पसंद करने से इनकार कर दे तो कोई क्या करूँ !

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  8. वाह!!!
    जैसा चलन वैसी पसंद!
    ऐसा कैसे होगा।

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