बुधवार, 23 नवंबर 2011

"यादें टुकड़ो में"


वो हंसती थी टुकड़ो में,
बोलती थी टुकड़ो में,
लिखती थी कुछ कुछ टुकड़ो में,
शर्माती थी टुकड़ो टुकड़ो में,
पलकें उठाती थीं टुकड़ो में,
गिराती भी थी टुकड़ों में,
कभी थामा हाथ कभी उंगलियाँ, 
वो भी टुकड़ो टुकड़ो में,
करती थी बहुत प्यार,
 मगर टुकड़ो में,
रूठी थी कई कई बार,
वो भी टुकड़ो में,
.
.
ये सिलसिला,
मुसलसल न चल सका, 
वक्त बाँट गया हमारा  प्यार,
टुकड़ो टुकड़ों में,
मैं बेखबर करता रहा इंतज़ार, 
टुकड़ो में,
और यादें उनकी  बस बिखर ही गई,
टुकड़ो में !!!

21 टिप्‍पणियां:

  1. और यादें उनकी बस बिखर ही गई,
    टुकड़ो में !!!

    waaah jawab nahi...

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  2. टुकड़ों को खूबसूरती से लिखा है आपने.अच्छी लगी.

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  3. बिखरे टुकडे भी जीवन के स्पंदन को जारी रखते हैं -मर्म भेदी प्रस्तुति!

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  4. बहुत ही सुन्दर, एक अस्तित्व बन कर जिया जाये।

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  5. उफ़ …………ये प्यार भी जो ना कराये कम है।

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  6. और शायद अब जिंदगी भी गुजर जाएगी टुकड़ो में अपनी................|
    फुर्सत में कभी इस ब्लॉग पर भी तशरीफ़ ले आइयेगा..
    पता है...
    http://teraintajar.blogspot.com/

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  7. टुकड़ों को सुन्दर संजोया है आपने ...

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  8. .
    ये सिलसिला,
    मुसलसल न चल सका,
    वक्त बाँट गया हमारा प्यार,
    टुकड़ो टुकड़ों में,...

    very touching lines...

    hope all is well ..

    .

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  9. और हमारा दिल भी टुकड़े-टुकड़े हो गया....!!

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  10. टुकड़ों वाली कहानी पास कर दी निवेदिताजी ने! बधाई!

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  11. कल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. कदाचित इस निर्मम संसार में प्यार की यही परिणति होती है ! बस यही कामना है आप उन्हें याद करें तो मुकम्मल तौर पर टुकड़ों टुकड़ों में नहीं ! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ! शुभकामनायें !

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