एक बार,
तुम आओ बस,
नेह का दीपक जला,
राह तुम्हे दिखलाऊंगा,
राह तुम्हारी,
अक्षत कुमकुम,
रोली चन्दन,
बिखराऊंगा,
बना पालकी पलकों की,
नित तारों की सैर कराऊंगा,
एक बार,
तुम आओ बस,
आंसू तेरे आँखें मेरी,
अधर तुम्हारे हंसी हमारी,
नित रौशनी बिखराऊंगा,
एक बार,
तुम आओ बस,
प्यार करूँ,
बस सांझ सवेरे,
दिन-रात सताऊँगा,
एक बार,
तुम आओ बस,
अंत समय है अब शायद,
पर तुमको तो होश कहाँ,
स्वप्न रचा था एक ऐसा,
हो हथेली दोनों तेरी,
और मुहं छुपा लूं मै अपना,
सुबक सुबक रोऊँ खूब,
और प्राण त्याग दूं मैं अपना,
एक बार,
तुम आओ बस !!!
हृदय की कोमलतम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत एहसास से लिखी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंकोमल एहसास से भरी सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंएक बार,
जवाब देंहटाएंतुम आओ बस,
आंसू तेरे आँखें मेरी,
अधर तुम्हारे हंसी हमारी,
नित रौशनी बिखराऊंगा,बेहतरीन अभिवयक्ति....
पर... पिछली बार छोडा ही क्यूं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंसादर...
waah...
जवाब देंहटाएंek baar...
na jane kitni baar...
yunhi bulaya tha
tumhe manaya tha
is baar bhi maan jao
aa jao
ek baar...
एक बार,
जवाब देंहटाएंतुम आओ बस.....!
हृदय की कोमलतम अभिव्यक्ति.........!!
बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति! बधाई !
जवाब देंहटाएंबड़े खतरनाक इरादे हैं।
जवाब देंहटाएंसुबक सुबक रोऊँ खूब,
और प्राण त्याग दूं मैं अपना,
यह किसी थानेदार ने पढ़ लिया तो खुदकसी की कोशिश के इल्जाम में बैठा लेगा थाने में दिनभर!