बुधवार, 11 मई 2011

"खूंटी पे टंगे जिस्म"

रूह मेरी,
बिस्तर पर,
पड़े पड़े, 
ताक रही है,
सामने लगी, 
खूंटियां,
दीवार पे |

जिस पर, 
लटक रहे हैं, 
कतार से, 
तमाम सारे,
जिस्म |

जिन्हें मै ही ओढ़ता हूँ,
मौका बे-मौका, 
बदल बदल के |  

एकदम बाईं ओर टंगा, 
सबसे नया है, 
इसमें भरा है, 
बहुत सारा नकली रुआब,
और, 
अकड़न मुर्दा जैसी, 
ये काम आता है, 
चंद बड़े और, 
ज्यादा दौलत वालों से,
मिलने जुलने में | 

इसके बगल टंगे जिस्म में, 
भरा है खोखला, 
अफसराना, 
जिसके बगैर लोग कहते हैं, 
इसमें o.l.q.. नहीं है,
इसे पहनता हूँ, 
दफ्तर में मजबूरन |  

एक जिस्म के कालर में, 
बकरम नहीं है,
ओढ़ता हूँ इसे, 
अपने से ओहदे में बड़ों के आगे |

जिस्म एक ऐसा है, 
जिसमे हवा ही हवा भरी है, 
ना मुड सकता है,
ना शिकन पड़ सकती है,
काम आता है, 
अपनी  गली महल्ले,
और रिश्तेदारों में |

अब तो बच्चे भी, 
पड़ जाते हैं,
उलझन में अक्सर, 
क़ि ये वाकई वालिद  है,
या, 
सिर्फ ओढ़ रखा है जिस्म, 
वालिदाना |

बीवी भी मेरी, 
उकता जाती हैं, 
अक्सर, 
देखके, 
मुझे  बदलते,
लिबास जिस्मानी |

हकीकतन,
उसके करीब कौन  है, 
बस ढूँढती रहती है,
उसी जिस्म को |

कोशिश,
भी करती  है,
बिठाने की तालमेल,
बदलते जिस्मानी लिबास से,
नाकाम ही रहती है,
और,
उफ़ भी नहीं करती |   
(इतनी तकलीफ तो द्रौपदी को भी नहीं हुई होगी

रूह मेरी, 
थक सी जाती है, 
निचुड़ जाती है, 
बदले बदलते, 
जिस्म इतने सारे |

ना बदले, 
तो जिन्दा रहना दूभर, 

क्योंकि मौके,
और मिज़ाज के, 
हिसाब से, 
जिस्मों के भी,
ड्रेस कोड,
होते हैं शायद |



"वैसे पता चला  है आजकल डिजाइनर जिस्म भी फैशन में आ गए हैं"   
   
    

14 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन भर इस रूह के न जाने कितने लिबास बदलते रहते है हम ....... खुद को पहचानना भी मुश्किल है.....

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  2. रूह मेरी,
    बिस्तर पर,
    पड़े पड़े,
    ताक रही है,
    सामने लगी,
    खूंटियां,
    दीवार पे |
    जिस पर,
    लटक रहे हैं,
    कतार से,
    तमाम सारे,
    जिस्म |
    जिन्हें मै ही ओढ़ता हूँ,
    मौका बे-मौका,
    बदल बदल के | ...
    वैसे पता चला है आजकल डिजाईनर जिस्म भी फैशन में आ गए हैं
    aur in mukhauton ke bagair koi pahchaan nahi

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  3. क्या कहूँ …………बेहद गहनता से सार प्रस्तुत किया है…………अब तो लबादे की तरह जिस्म ओढा होता है।

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  4. "क्योंकि मौके,
    और मिज़ाज के,
    हिसाब से,
    जिस्मों के भी,
    ड्रेस कोड,
    होते हैं शायद |"

    और भी कई जिस्म होते है..
    जो घर में प्रवेश करने से पहले
    पहन लिए जाते हैं
    जिससे बाहर क्या-क्या करके आये हैं
    वो न दिखे !
    उसकी खूंटी
    घर के बाहर दरवाजे पर लगी होती है..
    जहाँ वो बनावटी जिस्म टांग दिया जाता है
    फिर घर के अन्दर भी
    कुछ पता नहीं चल पता है...!!
    और जिसका कोड भी किसी को पता नहीं रहता है !!

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  5. सही कहते हैं -अब डिजाईनर जिस्म की ही गुजर है अब तो ......

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  6. भारत जैसे भूखे देश में डिज़ाइनर जिस्म बहुत मिल जाएंगे जिन्हें देखकर लगेगा कि हैंगर पर कपड़ा टंगा है :(

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  7. पुरानी टिप्पणियां कहां खो गई ????????

    कोई लौटा दे मेरी खोई टिप्पणियां......

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  8. इसके बगल टंगे जिस्म में,
    भरा है खोखला,
    अफसराना,
    जिसके बगैर लोग कहते हैं,
    इसमें o.l.q.. नहीं है,
    इसे पहनता हूँ,
    दफ्तर में मजबूरन ..

    Beautifully described.

    .

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  9. अलग-अलग जिस्मों की ये प्रस्तुति शानदार है ।

    मेरे ब्लाग नजरिया की भी 12 मई की टिप्पणियां ऐसे ही गायब हो गई हैं ।

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  10. रूह मेरी,
    थक सी जाती है,
    निचुड़ जाती है,
    बदले बदलते,
    जिस्म इतने सारे ...
    बहुत कमाल की रचना है ... ईनान इतना उलझ गया है अपने आवरण के जालों में ... बदलते जिस्म में अपना जिस्म नही रह आया है अब कोई ... बहुत शशक्त अभिव्यक्ति ...

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  11. बीवी भी मेरी,
    उकता जाती हैं,
    अक्सर,
    देखके,
    मुझे बदलते,
    लिबास जिस्मानी |

    हकीकतन,
    उसके करीब कौन है,
    बस ढूँढती रहती है,
    उसी जिस्म को |



    कमाल का लिखा है अमित जी ......जिस्म की पहचान ही खो गई है इस आधुनिकता के चक्कर में

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