"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
वजह क्या जो उदास करती है,
ये लड़की खुद के पास रहती है,
आंखे बोलती है मगर लब चुप हैं,
कुछ तो है जो भीतर घात करती है।
खिलखिलाता फूल अब गुमसुम क्यो,
भवरां बन काँटों का साथ धरती है।
कहाँ भटक रहे आज कल ? यूँ अच्छा लिखा है ।
कहाँ भटक रहे आज कल ? यूँ अच्छा लिखा है ।
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