फैज़ाबाद जंक्शन
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हमारा जन्म लखनऊ में हुआ मगर लगभग जन्म के बाद से ही सारा बचपन फैज़ाबाद जिले में कक्षा 12 तक रेलवे कॉलोनी में ही बीता।
रेलवे कॉलोनी प्रायः रेलवे स्टेशन के पास ही होती है। फैज़ाबाद की रेलवे कॉलोनी दो हिस्से में बनी हुई थी एक स्टेशन के सामने के हिस्से में और दूसरी स्टेशन के पीछे, जिसे लोको कॉलोनी कहते थे।
हम लोग लोको कॉलोनी में रहते थे। शहर जाने के लिए लोको कॉलोनी से निकल कर एक पुल पार कर जाना होता था। यह पुल रेलवे पटरियों के ऊपर से होकर दोनो कॉलोनी को जोड़ता था। पुल पर गुजरते समय नीचे तमाम डिब्बे, इंजन , गाड़ियां खड़े मिलते या शंटिंग करते रहते थे।
पुल का दूसरा छोर जहां खत्म होता था, वही बोर्ड लगा था फैज़ाबाद जंक्शन का। इसी नाम पट को देखते देखते याद हो गया था कि फ़ और ज़ के नीचे नुक्ता लगता है। इसी के पास एक पीले रंग का बहुत बड़ा सा एल शेप का पानी भरने का घूमने वाला मोटा सा पाइप लगा था जिससे इंजन में पानी भरा जाता था।
कोई ट्रेन आती और रुकती तो इंजन का धुआं सारे पुल को घेर कर अंधेरा कर देता था। हम लोग अक्सर तेज़ कदमो से उसी धुंए को चीरते हुए आगे बढ़ते जाते थे।
कभी कभी प्योर स्टीम निकल कर ऊपर उठती थी एकदम सफेद ,उससे होकर गुजरने पर जाड़ों में गरम गरम अच्छा भी लगता था।
चूंकि पापा रेलवे में थे तो सफर ट्रेन से झमाझम होता था। कुछ बातें हम लोग अपने आप ही समझ लेते थे , जैसे कि चलती हुई ट्रेन में अगर डिब्बे के नीचे से पटरियां निकलने लगे तो समझो कोई स्टेशन आने वाला है। जंक्शन मतलब कोई बड़ा स्टेशन होता था।
जी आई सी में पढ़ने के दौरान घर से स्कूल पटरियों के किनारे किनारे से जाना होता था। उस समय पटरियों पर दौड़ने में कम्पटीशन होता था। एक बार मालगाड़ी के डिब्बे में चढ़ते किसी ने देख लिया तो घर पर शिकायत हो गई थी फिर दो तीन दिन तक क्या क्या सूजा रहा बताना उचित नही।
स्टीम इंजन , गार्ड का डिब्बा , वैक्यूम ब्रेक, वैक्यूम वैन इन सब का भरपूर अभ्यास और विश्लेषण उसी जमाने मे कर लिया था। सिग्नल कैसे तार से खींचने से ही अप और डाउन हो जाता था बखूबी समझते थे।
रेलवे स्टेशन पर ए एच व्हीलर से कॉमिक्स फ्री में लाकर पढ़ना एकदम आसान था गोया घर की ही दुकान हो।
अखबार में आज फैज़ाबाद जंक्शन लिखा देखकर एक अजीब सी फीलिंग हो गई आज।
आज से इसका नाम बदल कर अयोध्या कैंट कर दिया गया। जंक्शन क्यों हटा दिया पता नही। जबकि जंक्शन अमूमन वहां लिखते है जहां दो दिशाओं के अतिरिक्त भी किसी अन्य दिशा में ट्रेन का आवागमन होता है।
फैज़ाबाद इतनी जल्दी जेहन से कैसे मिटेगा पता नही।
बहुत सुंदर
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