सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिन्दी दिवस पर एक प्रेम पत्र।

तुम्हारे स्पर्श में 'स्वर' है और निगाहों में 'व्यंजन'। तुम पास होती हो तो मैं भाषित होता हूँ।

तुमसे ही अलंकृत होते है यह स्वर और यह व्यंजन।रस छंद अलंकार पढ लूँ या तुम्हारा सानिध्य पा लूँ ,एक ही बात है।

अपलक देखती हो जब गद्य रचित हो जाता है और पलकें तितली बनती है जब तब काव्य बह निकलता है।

सोचता हूँ ,मैं शिरोरेखा हो जाऊं और तुम उस पर झूलती एक शीर्षक मेरे जीवन का।

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