तुम्हारे स्पर्श में 'स्वर' है और निगाहों में 'व्यंजन'। तुम पास होती हो तो मैं भाषित होता हूँ।
तुमसे ही अलंकृत होते है यह स्वर और यह व्यंजन।रस छंद अलंकार पढ लूँ या तुम्हारा सानिध्य पा लूँ ,एक ही बात है।
अपलक देखती हो जब गद्य रचित हो जाता है और पलकें तितली बनती है जब तब काव्य बह निकलता है।
सोचता हूँ ,मैं शिरोरेखा हो जाऊं और तुम उस पर झूलती एक शीर्षक मेरे जीवन का।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंकाव्य बह निकला है ।
जवाब देंहटाएं😊😊😊😊😊बहुत सुंदर पाती अमित जी। ये हिंदी बहुत प्यारी है। हार्दिक शुभकामनाएं😋😋🙏
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