लफ्ज़ मेरे वो,
कुछ खास न थे,
वो ठिठके जब,
ठहर तुम ही गये होते।
अश्क थामे रहा ,
लबों पे ,तबस्सुम से,
निगाहें मिला लेते गर तुम,
दो चार ढल तो गये होते।
कुछ खास न थे,
वो ठिठके जब,
ठहर तुम ही गये होते।
अश्क थामे रहा ,
लबों पे ,तबस्सुम से,
निगाहें मिला लेते गर तुम,
दो चार ढल तो गये होते।
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