शनिवार, 29 जुलाई 2017

" मै ,तुम और हम ......."


लोग बारिश की तमन्ना रखते हैं,
हम तो ओस में ही महक उठते हैं।
लकीरें थी तो अमीरी की मेरे हाथों में,
इश्क में उनके इश्क फकीरी से कर बैठे।
जानकर जान का हाल जानते नही वो,
जान जाती उनकी भी है मेरी जान पर।
सलामत रहे वो अपनी दरों दीवार में,
हम उनकी खुशबुओं में तसल्ली कर बैठे।

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