मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

" एक सिंदूरी सी शाम......."


एक सिंदूरी सी शाम थी,
कुछ उजली सी यादें थीं,
सामने समंदर था किनारा था,
रेत थी भर नज़र नज़ारा था,
लहरें उमड़ती पास उसके आती,
दौड़ती पकड़ती वह उन्हें पांव से,
पर लहरें ठहरी कब कहाँ,
उन्हें तो जाना होता वापस न,
किनारों से कर किनारा,
फिर समंदर में ही शायद,
प्यार भी उसका लहरों सा,
आवेग इतना पर ठहरा कभी न,
आती लहरों पर जाती लड़की
या शायद एक नौका क्षितिज पर।

2 टिप्‍पणियां: