एक सिंदूरी सी शाम थी,
कुछ उजली सी यादें थीं,
कुछ उजली सी यादें थीं,
सामने समंदर था किनारा था,
रेत थी भर नज़र नज़ारा था,
रेत थी भर नज़र नज़ारा था,
लहरें उमड़ती पास उसके आती,
दौड़ती पकड़ती वह उन्हें पांव से,
दौड़ती पकड़ती वह उन्हें पांव से,
पर लहरें ठहरी कब कहाँ,
उन्हें तो जाना होता वापस न,
उन्हें तो जाना होता वापस न,
किनारों से कर किनारा,
फिर समंदर में ही शायद,
फिर समंदर में ही शायद,
प्यार भी उसका लहरों सा,
आवेग इतना पर ठहरा कभी न,
आवेग इतना पर ठहरा कभी न,
आती लहरों पर जाती लड़की
या शायद एक नौका क्षितिज पर।
या शायद एक नौका क्षितिज पर।
बहुत सुंदर रचना👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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