सोमवार, 3 अप्रैल 2017

" कितनी शामें बीत गई यूं......."


सो लो न आज कांधे पर,
अरसा हुआ सहारा लिए,
कुछ सांसे तुम्हारी हो,
कुछ बीच मे हमारी हो,
थाम अंगुलियां यूं हथेलियों में,
कह जाओ सब वो ख्वाब अपने,
कितनी शामें बीत गई यूं,
बेचैनी में तब्दील हुए।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. समय बीतता जाता हैऔर जीवन जिए बिना ही..

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