गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

" एक रात पसरी हुई ........"

(१ )
नींद ,
मत आया करो ,
जब वो हों ख्यालों में,

सुला देना कभी ,
जब वो आना भूल जाएं ,
मुझे कभी न उठने के लिए ।

(२ )
रात ,
तुम गहराती जाओ ,
उजाला भर लिया है मैंने ,
एक जुगनू है मेरे पास ,
उनकी यादों का ।

(३ )
ख़्वाब ,
नहीं देखना अब तुम्हे ,
एक दिल ही काफी नहीं  ,
रोज़ टूटने के लिए ।

(४ )
तबस्सुम ,
मत शरीक हो ,
मेरी मायूसियों में,
मुकाम बदलने से ,
मायने बदल जाते हैं ।

"पहले रात रोज़ मुझे सुलाती थी अब वो खुद सो जाती है रोज़ मेरी गोद  में सिर रख कर । इसे निहारते निहारते कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता । यूं सोते हुए देखना रात को याद दिला जाता है तुम्हारी । फिर एक जुगनू और चमक उठता है सिरहाने मेरे । "

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