रविवार, 3 अप्रैल 2016

" मर के भी मुँह न तुझसे मोड़ना......... "


प्यार में जान देने की कहानियाँ बहुत हैं । फिल्में भी खूब बनी हैं । गाने तो न जाने कितने बजते रहते हैं दिन भर इन्ही भावनाओं को व्यक्त करते हुए । जब हम इन कहानियों , फिल्मों , गानों को इतना पसंद करते हैं तो वास्तव में ऐसा हो जाता है तब व्यर्थ का विलाप क्यों ।

अगर प्यार में जान देना इतना ही ख़राब / गलत है तो ऐसी फिल्मों , गानों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए । जीवन अनमोल है ,व्यर्थ नहीं खोना चाहिए । परन्तु प्रायः जान देने वाले अपने प्रेमी या परिवार को दुःख पहुँचाने के उद्देश्य से अथवा ग्लानि के भाव से भरने के उद्देश्य से भी ऐसा कठोर कदम उठा लेते हैं ।

जान देने वाले ने किन परिस्थितियों में जान दी , कभी पता नहीं लग पाता । सच तो यह है कि वह परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि जीवन दूभर कर देती हैं । वही परिवार , समाज जो आज मरने वाले पे विलाप / पाश्चाताप करता दिख रहा ,वही उसे जीते जी मरने से भी बदतर स्थितियां उत्पन्न कर देते हैं अपने संवादों से ।

ज्ञान देना बहुत सरल है कि मरने वाले को मरना नहीं चाहिए था , मुकाबला करना चाहिए था । अपनों से अपनी बात करना चाहिए था । सच तो यह है कि यह सब प्रयत्न करने के बाद ही आत्महत्या जैसी स्थिति की नौबत आती होगी  ।

मर के भी मुंह नहीं मोड़ेंगे , तुम्हारे प्यार में तुम्हारे बगैर जी न पाएंगे ,साथ जिए हैं साथ मरेंगे ,ऐसे संवाद जब तक कानों में पड़ते रहेंगे ,ऐसा होता रहेगा । जो घटनाएं किस्सों में अमर हैं उनके लिए नए पात्र भी ऐसे ही मिलेंगे न । जब तक ऐसी कहानियों को दृष्टांत किया जाता रहेगा , शिरीन फरहाद , सोनी माहिवाल , लैला मजनू जैसे यह चरित्र वास्तव में भी जीवित होते रहेंगे ।

घटना के बाद टिप्पणी करना अत्यन्त सरल है ।अपने आसपास समाज में झाँक कर देखिये , यह जुमला रोज़ खूब सुनने को मिलेगा कि मन करता है जान दे दें ऐसी जिंदगी से तो मौत बेहतर ।

शब्द ही प्यार दर्शाते हैं और शब्द ही ज़हर घोल देते हैं जीवन में । इतना सा समझ आ जाये तो प्यार क्या दुश्मनी में भी कोई जान न दे और न ले कभी ।

मरने वाला क्यों मरा  , किसके कारण जान दी उसने । जो जीवित है वह बखूबी जानता है परन्तु सत्य कभी उजागर नहीं होता और दोष मरने वाले पर ही मढ़ दिया जाता है कि वह स्थिति का सामना नहीं कर पाया या भावुक था या सबसे सरल बात होती है कि उसके अंदर ऐसी प्रवृति थी । दुःख होता है मरने के बाद भी मरने वाले की ही छीछालेदर होती है । 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 270 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  2. सच लोग मौत की भी छिछालेदारी कर देते हैं . संवेदनशील लेखन

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