एक्सक्यूज़ मी , 'इश्क तुम्हे हो जायेगा' ,चाहिए थी , किताबों की दुकान पर सेल्सगर्ल से कहा मैंने । पूरी बात सुने बगैर उसने मुझे घूरते हुए देखा और पूछा आपको कैसे पता ,मुझे इश्क हो जाएगा । अरे , यह किताब का नाम है ,जो मुझे चाहिए ,मैंने थोड़ा संकोच व्यक्त करते हुए कहा । इस पर अब वो संकोच में आ गई और बोली ,नहीं मेरे पास तो नहीं है ,आप बगल में देख लें ।
बगल की दूकान पर मैंने फिर वही बात कही ,पर अबकी थोड़ा बदलते हुए पूछा कि वह इश्क होने वाली किताब है । यहाँ भी सेल्सगर्ल ही थी ,मुस्कुराते हुए बोली ,आप कोई भी किताब ले लें ,सभी किताबों से पढ़ने पर इश्क हो जाता है । मैंने कहा नहीं ,किताब का नाम ही है 'इश्क तुम्हे हो जाएगा ' । अरे ,फिर तो बहुत उम्दा किताब होगी ,अभी तो मेरे पास नहीं है ,पर ऑर्डर करती हूँ । मैंने कहा पर मुझे तो अभी चाहिए । इस पर उसने यूनिवर्सल पर देखने को कहा ।
वहां गया तो एक नवयुवती तैनात थी काउंटर पर । अबकी मैंने थोड़ा सावधानी बरतते हुए पूछा ,लगभग फुसफुसाते हुए ,अरे इश्क तुम्हे है । वह भी हलके से मुस्कुरा दी और नज़रें गड़ाते हुए बोली ,आप तो नजूमी मालूम होते हो । अभी आज ही मुझे एहसास हुआ कि मुझे इश्क है किसी से और आपने आते ही मुझसे पूछ लिया । अरे ,मैं नजूमी वजूमी नहीं ,एक किताब की तलाश में हूँ जिसका नाम ही है 'इश्क तुम्हे हो जायेगा' । इस पर वह मुस्कुराते हुए बोली ,मुझे तो इश्क हो चुका है ,आप यह किताब किसी और दुकान पर ढूंढो ।
मैंने कहा ,कही यह नाम ,किताब का, मुझे किसी घोर संकट में न डाल दे ,इसलिए अबकी एक कागज़ के छोटे से पुर्जे पर लिखा 'इश्क तुम्हे हो जायेगा ' और लिखकर एक बहुत बड़ी सी किताबों की दूकान पर गया और घुसते ही एक काउंटर पर बैठी सुन्दर सी महिला को कागज़ का पुर्जा थमा दिया । उसने उसे खोला और पढ़ते ही इशारे से एक हट्टे कट्टे आदमी को बुलाया और उसे पढ़ा दिया । उस आदमी ने आव देखा न ताव और मेरा गिरेबान पकड़ कर बोला ,अपने को बहुत बड़ा रोमियो समझते हो ,यूं खुले आम पर्ची पर लिख कर इश्क का इज़हार कर रहे हो । इतना ओवर कांफिडेंस है कि लिख कर दे रहे हो मैडम को ' इश्क तुम्हे हो जाएगा ' । मैं समझ गया ,यहाँ भी अर्थ का अनर्थ हो ही गया । मैंने तुरंत दोनों हाथों को आपस में मिलाते हुए क्षमा मांगने की मुद्रा में कहा ,अरे इसी कन्फ्यूज़न से बचने के लिए मैं तो किताब का नाम लिख कर दे रहा था कि मैडम नाम पढ़ कर किताब दे देंगी अथवा बता देंगी उसके विषय में । पर यहाँ तो लिख कर पूछना भी गुनाह हो गया ।
अब तक वह मैडम सच समझ चुकी थीं । पूछने लगी ,अच्छा राईटर कौन है । मैंने बताया 'अनुलता राज नायर । ओह ,वह किताब तो ऑनलाइन मिल रही है । अभी दुकानो पर बिक्री के लिए नहीं उपलब्ध है । आप ऑनलाइन मंगवा लें । पर आपने पढ़ा है क्या जो इतनी शिद्दत से खरीदना चाहते हैं इस किताब को , मैंने कहा अभी पढ़ा तो नहीं है ,पर जितना जानता हूँ लेखिका को उस हिसाब से निश्चित तौर पर यह बहुत ही उम्दा किताब होगी ।
अब ढूंढ ही लेता हूँ , इश्क ............ऑनलाइन ।
so so sweet of you :-)
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी किताब की वजह से लोग आपको घूरें , आप संकट में पड़ें ये हमें गवारा नहीं.........
:-)
ऑनलाइन आर्डर करें.......सीधे घर आयेगी...फिर पढना दोनों मिल कर :-)
सादर
अनु
ps- and thanks a lot for this post...i feel happy and honoured !!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंमजेदार...
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है !
जवाब देंहटाएंअरे ये तो चुटकुला हो गया, हम तो इंतज़ार में थे कि किसी की सेंडल पड़ेगी :P
जवाब देंहटाएंबढ़िया मजेदार पोस्ट.
बेहद मजेदार... :)
जवाब देंहटाएंकिताब हाथ लगने से पहले ही इतने हादसे हो गए आपके साथ। पढ़ने के बाद क्या होगा, सोचकर ही डर लग रहा है :D
जवाब देंहटाएंkamaal hai waah yah kitab
जवाब देंहटाएंkandwal mohan madan