चाँद देखा तुमने ,
तुम्हारी तो ईद हो गई ,
रोज़े हुए सब पूरे ,
खुशियां भी कैद हो गईं ।
कभी ख्याल ,
न आया उसका ,
ईद जिसकी होती ,
बस दीद से तुम्हारे ,
चाँद चाँद कहता वो ,
ढूंढता सबमें तुमको ,
छलकते आंसुओं से करता ,
वज़ू पाँचों वक्त वो सारे ,
दुआ में तुमको मांगे ,
तुम्हारी दुआ वो चाहे ,
मोहब्बत उसने की है ,
थोड़ा हक़ अता भी कर दो ,
थोड़ा तुम मुड़ के देखो ,
थोड़ा वो भी जी भर रो ले ,
यूं ही नज़रें मिला लो ,
कभी उसकी भी ईद हो ले ।
वाह......
जवाब देंहटाएंbeautiful !!
अनु
वाह !! अनूठी रचना , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंथोड़ा तुम मुड़ के देखो ,
जवाब देंहटाएंथोड़ा वो भी जी भर रो ले ,
यूं ही नज़रें मिला लो ,
कभी उसकी भी ईद हो ले ।
बहुत ही सुन्दर
क्या बात कही है!! बम्पर वापसी!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया सामयिक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खुबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट माँ है धरती !
ईद और दीद ... वाह .
जवाब देंहटाएंwaahhh khubsurat rachna ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा, बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...
अच्छी भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in