" तिथियों से परे............"
तुम परे हो ,
तिथियों से ,
रहो सदा ,
'अ-तिथि' बन कर |
बाट जोहूँ ,
आस छोड़ दूं ,
आ जाओ ,
तुम आहट बन कर |
नींद खो जाए ,
चैन बिछड़ जाए ,
आ जाओ तुम ,
ख़्वाब बन कर |
हो अँधेरा ,
मन भ्रांत हो ,
आ जाओ तुम ,
किरण बन कर |
तुम परे हो ,
तिथियों से ,
रहो सदा ,
'अ-तिथि' बन कर |
so sweet...
जवाब देंहटाएं:-)
कोमल खूबसूरत अहसाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अमित जी...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
जो सदा लुभाये, सारी तिथियों से परे।
जवाब देंहटाएंदिल को छू हर एक पंक्ति...
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअ-तिथि बन कर कम से कम साथ तो बना रहेगा
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंतिथियों के बेहतरीन संयोगदिवस पर..क्या खूब रचना प्रस्तुत की है।।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अमित जी
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंgajab .... :)
जवाब देंहटाएं: नम मौसम, भीगी जमीं ..
बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएं:) pyare se ahsaas... khubsurat....
जवाब देंहटाएं'अ-तिथि' achchhha laga ye shabd:)