शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

मुख़्तसर सी बात

 मुख्तसर सी बात थी

मगर इसी बात में तो बात है


भीड़ भरी ज़िन्दगी में

चंद लम्हों की मुलाकात थी


उन लम्हों में बसी साँसे तेरी

हर एक साँस थी धड़कन मेरी


सकुचाती थी हथेलियाँ मेरी

उनमें धड़कती रहीअंगुलियाँ तेरी


वक्त गुज़रा फिर

जिंदगी की शाम हुई

मुड़ कर न देखा

उन लम्हों ने दुबारा।


😊

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें