मैं यह तो नहीं कह सकती कि वो भविष्य दृष्टा हैं, मगर वह कालबोध से मुक्त ज़रूर हैं।
इसलिए उनकी बातों में एक चैतन्यता हमेशा विद्यमान रहती है। उनको सुनते हुए मैं निहितार्थ विकसित नहीं करती, मगर मैं सिलसिलेवार ढंग से उनकी बातों को एक जगह तह लगाकर ज़रूर रखती जाती हूं।
जब मैं बहुत व्यस्त होती हूं तब उनकी बातों की तह खोलकर पढ़ती हूं। ख़ालीपन में न वो और न उनकी बातें समझ में आती हैं।
ख़ालीपन में उनके प्रति स्नेह महसूस होता है और व्यस्तता में उसके प्रति आदर पैदा होता है।
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