शनिवार, 7 सितंबर 2024

गूगल मैप और रास्ता

आजकल कहीं जाना हो और रास्ता न पता हो पहले से तो लोग गूगल मैप के सहारे गंतव्य तक पहुंच जाते हैं।

हम व्यक्तिगत रूप से इसका इस्तेमाल लगभग नही ही करते हैं। अपने शहर में तो लगभग सभी जगहों की खाक छान रखी है तो मुश्किल नही होती कोई और अगर कुछ नए लैंडमार्क भ्रम की स्थिति पैदा करते भी है तो बस शीशा डाउन कर किसी भी अजनबी से पूछ लेते हैं।

अगर किसी का घर पता करना हो तो उस क्षेत्र में कोई आयरन करने वाला ठीहा जैसे ही दिखे वहां पूछ लें एकदम सही-पता पता चल जाएगा।

कोई होटल रेस्त्रां पता करना हो तो वहां कहीं पान सिगरेट की गुमटी ढूंढ कर उससे पता किया जा सकता।

किसी सरकारी इमारत , बैंक आदि का पता करना हो तो वहां घूमते हुए रिक्शे वाले से पूछ सकते।

रास्ता पूछने पर बताने वाला व्यक्ति रास्ता ही नही बताता बल्कि उसके साथ तमाम जानकारियां मुफ्त में दे देता है।

मुफ्त की जानकारियां कुछ इस तरह की होती हैं :

●अरे वहां तक गाड़ी नही जा पाएगी आप इधर ही कहीं लगा दीजिये।

●आप इधर से न जाकर पीछे से जाइये पास पड़ेगा और इधर का रास्ता बहुत खराब है।

●यह दफ्तर पिछले महीने ही मुख्यालय वाली बिल्डिंग में शिफ्ट हो गया है। लगता है आप बहुत दिनों बाद आये हैं।

●यहां मकान नम्बरो की सीरीज अजीब सी है कुछ odd even टाइप,ऐसे नही मिलेगा। कहाँ काम करते हैं, अच्छा वो बिजली वाले ,अरे उनके घर के पास एक सीढ़ी वाला ठेला खड़ा होगा।

●अच्छा वो मास्साब जिनके यहां बच्चे ट्यूशन पढ़ने आते हैं।

●जिनके यहां कोई फंक्शन है आज।

और भी तमाम इनपुट मिल जाते एकदम मुफ्त।

वैसे भी अजनबियों से रास्ता पूछने में एक नया अनुभव होता है।उस शहर के लोगों का मिजाज़ कैसा है साफ पता चल जाता है। 

कभी इसी तरह मुझसे भी कभी कोई रास्ता पूछता है तो बड़े इत्मीनान से उसे रास्ता जरूर बता देता हूँ , अगर मुझे नही पता होता तो आसपास के लोगों से पूछकर उसे बता देता हूँ।


छोटी सी ज़िंदगी मे ऐसी भी क्या हड़बड़ी कि किसी को हम रास्ता/ पता बताने में भी समय की दुहाई देते हुए उसे मना कर देते हैं।

रविवार, 1 सितंबर 2024

आकार

 बारिश की बूंदे जितनी नन्ही सी होती है , वो कार के शीशे पर अधिकतम समय तक के लिए ठहरती हैं। आकार बड़ा होते ही ढुलक कर फ़ना हो जाती हैं।

"छोटी छोटी बातें ज्यादा देर तक मन को विचलित अथवा प्रफुल्लित करती हैं।"

"बड़ी बातें या तो क्रोध की अग्नि में स्वाहा हो जाती है और अगर बात प्रशंसा की हो तो वे घमंड पैदा करती हैं, जिसे भी अंत मे चूर होना ही होता है।"