"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
लेकिन अमित जी इस पाती में उन अजीम शख्शियत का नाम तो लिखा ही नहीं आपने।फिर भी हार्दिक बधाई इस सुन्दर उपहार के लिए।बडे नसीब वालों को मिलते हैं इस तरह के तोहफे 🙏
लेकिन अमित जी इस पाती में उन अजीम शख्शियत का नाम तो लिखा ही नहीं आपने।फिर भी हार्दिक बधाई इस सुन्दर उपहार के लिए।बडे नसीब वालों को मिलते हैं इस तरह के तोहफे 🙏
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