रातें रेशमी चादर सी होती हैं और तुम्हारी बातें सितारों सी ।
तुम बातें करती हो न तब मैं तुम्हारे लफ़्ज़ों को अपनी हथेलियों पर सहेजता रहता हूँ और तुम्हारे सो जाने के बाद एक एक कर उन लफ़्ज़ों को टांक देता हूँ , इस रेशमी चादर पे ।
फिर इन सितारों की झिलमिलाहट में बड़ी सुकून भरी नींद आ जाती है मुझे ।
बीती रात न बातें थीं न सितारे और न सुकून । उस रेशमी चादर का एक हिस्सा कोरा रह गया जो दिन के उजाले में एक अलिखित कहानी बयां कर रहा ।
बहुत खूब अमित जी! शायर और कवि मन का ये संवाद किसे बाग बाग ना कर दे!!!!!😃
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