रेहाना ,जो अभी छठी क्लास में है, अगले दिन के स्कूल के लिए अपना बैग लगाते हुए आस्मा से बोली, "मम्मी आज मैं स्विमिंग के लिए नही जाऊंगी।"
"क्यों क्या हुआ",आस्मा ने चौंकते हुए पूछा। "मम्मी, रेयान जो मेरा लॉकर पार्टनर है , वो लॉकर अच्छे से नही रखता, सारा सामान मुझे ठीक कर रखना होता। खुद कुछ करता भी नही और मुझ पर हुकुम चलाता है। मुझे नही अच्छा लगता, कल मेरा हेयर बैंड भी गुम हो गया था, फिर निकला उसके कॉस्ट्यूम से ही।"
"परेशान नही हो ,आज मैं शाम को चलती हूँ और क्लब के मैनेजर से बात करूंगी कि तुम्हारा लॉकर पार्टनर बदल जाये," आस्मा ड्रेसिंग टेबल के सामने शीशे में पीछे खड़ी रेहाना को देखते हुए बोली।
उसी दिन शाम को क्लब में जब आस्मा पहुंची तो मैनेजर के रूम में रिवॉल्विंग चेयर पर एक सोलह सत्रह वर्ष का लड़का , जिसकी अभी मूंछे भी नही आई थी ,बैठा हुआ था और कुर्सी बाएं दाएं गोल गोल घुमाते हुए मोबाइल पर गेम खेल रहा था।
"मैनेजर कहाँ है, मुझे उनसे बात करना है", पूछा आस्मा ने। "आज मैनेजर नही आएंगे इसीलिए मैं यहां आ गया हूँ, विवान नाम है मेरा", उस नवयुक ने बताया।
"तुम मैनेजर के बेटे हो , पूछा आस्मा ने।" " नही , मैं यहां के ओनर का बेटा हूँ, वो यहां नही आते कभी ,पर आज उन्हें अभी आना है यहां।" "आप मुझे बताइए क्या बात है।"
"मेरी बेटी रेहाना का लॉकर रेयान की जगह किसी और बच्चे के साथ कर सकते हैं आप,मैं आस्मा हूँ ,रेहाना की मम्मी, रेहाना आपके क्लब में शाम को रोज़ स्विमिंग के लिए आती है।" "आपने बच्चों को बैग रखने के लिए दो दो बच्चों को एक साथ लॉकर अलॉट कर रखा है शेयरिंग के लिए।" बताया आस्मा ने।
"हां तो क्या प्रॉब्लम है आपकी", पूछा विवान ने। "हमारे यहां बच्चों को अल्फाबेटिकली चूज कर दो बच्चों को एक साथ क्लब कर एक लॉकर अलॉट कर देते हैं। आपकी बेटी रेहाना को रेयान के साथ कर दिया गया है", बताया विवान ने।
"नही प्रॉब्लम कोई नही ,बस आप उसे किसी और बच्चे के साथ क्लब कर दीजिए।"
"आखिर हुआ क्या", फिर जोर देकर विवान ने पूछा।
"अरे रेयान अच्छे से अपना सामान नही रखता और रेहाना को परेशान करता कि तुम ही मेरा बैग भी अच्छे से संभालो। रेहाना शांत सी है ,कुछ बोलती नही और अपने साथ उसका भी सारा काम करती",बताया आस्मा ने। कल रेहाना का हेयर बैंड भी चला गया था रेयान के बैग में।
विवान कुछ समझा रहा था अपनी कच्ची उम्र की समझ से आस्मा को ,तभी उसके पापा आकाश वहां आ गए।
औसत कद , छरहरा व्यक्तित्व ,सांवला रंग ,तीखे नयन नक्श, सीना तना हुआ परन्तु सौम्यता के साथ भारी आवाज़ में पूछा उन्होंने, क्या परेशानी है मैडम को।
आस्मा ने सिर ऊपर उठाकर देखा तो पल भर को जड़वत हो गई, पहचाने की झूठी कोशिश करने लगी ,जबकि पहचान तो आवाज़ से ही चुकी थी।
आकाश भी एक पल को ठिठका, फिर अचानक बोला, "आस्मा तुम यहाँ कैसे"। भावभंगिमा ऐसी थी कि अगर विवान वहां नही होता तो शायद आकाश ने आस्मा को गले लगा लिया होता। आकाश के मन मे कॉलेज के दिनों की आस्मा की खुले बालों में हेयर बैंड लगाए तस्वीर उभर आई थी।
आस्मा भी धीरे से कुर्सी खींच कर बैठ गई और एकदम से आंखे मूंद ली। मुंदी आंखों से बीस साल पहले का मंजर सामने दिखने लगा था। बीएससी का केमिस्ट्री प्रैक्टिकल का पहला दिन था। एम पी गुप्ता प्रोफेसर थे। सभी बच्चों को लैब असिस्टेंट द्वारा एपरेटस बांटे जा रहे थे। पिपेट और ब्यूरेट रखने के लिए लॉकर दो दो को एक साथ दिए जा रहे थे। एक ताले की दो चाभियाँ थी , एक एक चाभी दोनो को रखनी थी।
पूरे बीएससी की क्लास में आस्मा अकेली लड़की थी। अल्फाबेटिकली उसे आकाश के साथ लॉकर जॉइंटली अलॉट कर दिया गया था।
आस्मा बहुत खूबसूरत थी ,पूरी यूनिवर्सिटी में उसकी बातें होती थी । लोग उसका सामीप्य पाने का बहाना ढूंढते रहते थे। आकाश एक मेधावी और टॉपर छात्र था। उसे आस्मा के कारण थोड़ी उलझन होती थी क्योंकि आस्मा अक्सर लॉकर की चाभी भूल जाती थी और टाइट्रेशन भी कभी समय पर पूरा नही कर पाती थी।
जहां सारे लड़के उसकी मदद को हमेशा तैयार रहते थे वहीं आस्मा बस आकाश से ही सीखना समझना चाहती थी। लेकिन आकाश आस्मा की लापरवाही से तंग आ चुका था। समान ठीक से न रखने के कारण कांच के बीकर , टेस्ट ट्यूब अक्सर उससे टूटते रहते थे , अक्सर प्रोफेसर से कहता ,"सर मेरा लॉकर पार्टनर बदल दीजिये" ,पर प्रोफेसर गुप्ता हंस कर टाल देते थे। यह बात भी सच थी कि आकाश मन ही मन उसे चाहने भी लगा था मगर पढ़ाई के आगे प्यार मोहब्बत की बात सोचना भी उसके लिए पाप था।
कितनी बार लॉकर से सामान निकालते समय दोनो के सिर आपस मे टकरा जाते थे, आकाश सॉरी बोलता था मगर आस्मा तो जैसे उसे छूने के बहाने ढूँढती थी ,अच्छा तो आकाश को भी लगता था।
बीएससी के पहले साल में ही आकाश का चयन इंजीनियरिंग कॉलेज, इलाहाबाद में हो गया। फिर कभी आस्मा से मुलाकात या कोई सम्पर्क नही हुआ।
आज अचानक वही पुरानी स्थिति ,जॉइंट लॉकर की समस्या और वो दोनो एक दूसरे के आमने सामने ,ऐसा लग रहा था जैसे कोई इबारत हूबहू दोहराई जा रही हो।
बाद में पता चला रेयान आकाश का ही दूसरा बेटा है।
"तुम इंजीनियर बनते बनते क्लब के मालिक कैसे बन गए", छेड़ा आस्मा ने। "वो फादर इनला का रियल स्टेट का बिजनेस था न , उसी को संभालने के चक्कर मे टाटा मोटर्स का जॉब बस दो साल के बाद ही छोड़ना पड़ा और यह सब जिम्मेदारी आ गई,तुम बताओ , हबी क्या करते तुम्हारे।"
"दिल के डॉक्टर है, हार्ट स्पेशलिस्ट", मुस्कुराते हुए बताया,आस्मा ने।
बड़ी देर तक दोनो हंसते मुस्कुराते रहे ,पर यह भी सच था कि दोनो की आंखों के कोर भी भीगे हुए थे।
लॉकर का झगड़ा प्यार बनने से पहले ही अधूरा जो रह गया था। आकाश की मुट्ठी कसी यूँ बंधी थी जैसे उसने पकड़ रखा हो हेयर बैंड ,आस्मा का।
वाह.बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण कहानी है अमित जी।दो बिछुडे और सुलझे सरल प्रेमियों की ये सादी सी कहानी बहुत अच्छी लगी।👌🙏
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