बुधवार, 19 अगस्त 2020

सिगरेट.....

अंगुलियों के गुलेल पर टिकी सिगरेट कश दर कश सिमट कर राख हुई जा रही थी। लंबे से एक कश ने फिर उगलती सांस के साथ एक छल्ला बनाया ,और वह छल्ला लम्हा लम्हा बड़ा होता गया ,इतना बड़ा हुआ कि उस छल्ले के भीतर से सारी दुनिया नज़र आने लगी । फिर वह छल्ला अचानक से सारी दिशाओं में घुल सा गया।

वक्त बीतता नही है, इन्ही दिशाओं में घुलता रहता है।

सिगरेट के छोर पर टिका लाल गोला ,आग का ,जब दमकता है अचानक से ,तो निष्ठुर लोहा भी पिघल कर लावा बन जाता है और बह जाता है आंखों से।

सिगरेट कितनी मासूम होती है ,होंठो पर टिकी रहने की ख्वाहिश में खाक होती जाती है ।

मासूम सा ख्याल फिर आ गया उनका , खाक होने को।

#रातबारहबजे

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