बुधवार, 20 मई 2020

पगडंडी ......

पगडंडियों पर चलने में एक अलग अनुभूति होती है। पगडंडियाँ अपनी राह में आने वाले पेड़ पौधे ,घास फूस, झाड़ी ,नदी नाले ,जंगल  इत्यादि को कभी रौंदती नही बल्कि उन सबके अस्तित्व को बचाते हुए आगे बढ़ती जाती है। पगडंडियों पर कभी भीड़ नही होती , कभी रास्ते रुकते या बन्द नही होते।

पगडंडियाँ तो बस आने जाने से ही अपने आप बन जाती है जबकि सड़के बनाने में विध्वंस भी शामिल होता है।

"दिलों के भीतर भी रास्ते तो बहुत सारे होते हैं , जिन्हें भीड़ रौंदती रहती है पर पगडंडियाँ बहुत कम और वह भी अक्सर अधूरी होती है और जो प्यार में होते हैं वो इन्ही अधूरी पगडंडियों पर चल कर उन्हें पूरा करते हैं।"

वक्त के साथ पगडंडियाँ गुम भी हो जाती है पर मंजिलों को जोड़ने में बनाई गई भव्य सड़कों में इन पगडंडियों की रूहें शामिल रहती हैं।

"एक अधूरी सी पगडंडी पर कभी अकस्मात पांव पड़ गये थे और वह सफर आज भी जारी है।"

1 टिप्पणी:

  1. "एक अधूरी सी पगडंडी पर कभी अकस्मात पांव पड़ गये थे और वह सफर आज भी जारी है।"

    –बहुत खूब
    शुभकामनाएं

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