शनिवार, 11 जून 2016

" शून्य के भीतर शून्य ........."


शून्य के भीतर भी ,
होते हैं बहुत सारे शून्य ,
जब जब तुम चुप रहे ,
शून्य धंसते गए ,
एक के भीतर एक ,
फिर एक और एक,
कितनी भी बातें ,
कोई और कर ले ,
शून्य में गूँज ,
फिर कभी नहीं ,
पहला शून्य गर तुम ,
खींच लो अलग ,
बस दो बोल ,
बोल तो दो ,
शून्य के पीछे शून्य ,
बहुत सारे शून्य,
दौड़े चले आएंगे,
सब एक कतार में,
करने लगेंगे अठखेलियां
वही सारे शून्य ,
बन कभी निगाहे और ,
कभी तबस्सुम तुम्हारी ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 जून 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " वकील साहब की चतुराई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. bahut khub kripya hamare blog www.bhannaat.com ke liye bhi kuch tips jaroor den

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  4. सुंदर। पूर्णमदं पूर्णमिदं, पूर्णात पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते।

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  5. पहला शून्य गर तुम ,
    खींच लो अलग ,

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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  6. शून्य में बसी निगाहें और उसमें झलकती खूबसूरती बहुत खूब .

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