शून्य के भीतर भी ,
होते हैं बहुत सारे शून्य ,
होते हैं बहुत सारे शून्य ,
जब जब तुम चुप रहे ,
शून्य धंसते गए ,
शून्य धंसते गए ,
एक के भीतर एक ,
फिर एक और एक,
फिर एक और एक,
कितनी भी बातें ,
कोई और कर ले ,
कोई और कर ले ,
शून्य में गूँज ,
फिर कभी नहीं ,
फिर कभी नहीं ,
पहला शून्य गर तुम ,
खींच लो अलग ,
खींच लो अलग ,
बस दो बोल ,
बोल तो दो ,
बोल तो दो ,
शून्य के पीछे शून्य ,
बहुत सारे शून्य,
बहुत सारे शून्य,
दौड़े चले आएंगे,
सब एक कतार में,
सब एक कतार में,
करने लगेंगे अठखेलियां
वही सारे शून्य ,
वही सारे शून्य ,
बन कभी निगाहे और ,
कभी तबस्सुम तुम्हारी ।
कभी तबस्सुम तुम्हारी ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " वकील साहब की चतुराई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंbahut khub kripya hamare blog www.bhannaat.com ke liye bhi kuch tips jaroor den
जवाब देंहटाएंसुंदर। पूर्णमदं पूर्णमिदं, पूर्णात पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते।
जवाब देंहटाएंपहला शून्य गर तुम ,
जवाब देंहटाएंखींच लो अलग ,
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
शून्य में बसी निगाहें और उसमें झलकती खूबसूरती बहुत खूब .
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