दिनांक २१.१२.१२ को दुनिया खत्म हो जायेगी | कोई पिंड हमारी धरती से टकराएगा और हम खंड खंड हो बिखर जायेंगे | ऐसी भविष्यवाणी की गई है | कहते हैं 'माया कलेंडर' में २१.१२.१२ के बाद की तिथि ही अंकित नहीं है |
ऐसा हो या न हो ,कौन जानता है परन्तु जब कभी भी अंत होगा तो ऐसे ही होगा | हम इतने आशावादी हैं और डरपोक भी कि इस कटु सत्य को मान लेने में अपनी पराजय समझते हैं | ऐसा हो क्यों नहीं सकता , इसके सम्बन्ध में अभी तक कोई तर्क नहीं दिया गया है | क़यामत अर्थात सभी का एक साथ अंत या मौत | जब किसी की मृत्यु होती है तब भी तो ऐसे ही होता है कि अचानक जीता जागता व्यक्ति सदा के लिए सो जाता है | संभव है कि सभी का अंत एक साथ हो जाए |
मृत्यु अथवा अकस्मात अंत की सच्चाई को स्वीकार कर लेना चाहिए | वही तो यात्रा का अंतिम पड़ाव है | 'यक्ष -युधिष्ठर' प्रश्नोत्तर से स्पष्ट ज्ञान मिलता है कि 'सबसे बड़ा सत्य है कि मृत्यु निश्चित है ' और 'सबसे बड़ा भ्रम है कि यह सत्यता केवल अन्य लोगों पर ही चरितार्थ होगी ' | हम सब एक दूसरे को झूठी दिलासा देते रहते हैं कि अरे ! कोई दुनिया -वुनिया ख़त्म नहीं होने वाली ,सब अफवाह है | ऐसा नहीं है , जब कभी भी ऐसा होगा ,अकस्मात ही होगा | 'एन्ट्रापी' हमेशा बढती जा रही है और अधिकतम 'एन्ट्रापी' को ही 'कैटेसट्राफी' अर्थात क़यामत कहते हैं |
इतनी खूबसूरत दुनिया कभी न खत्म हो तो बेहतर है ,परन्तु बारी बारी हर एक की दुनिया तो खत्म होती ही रहती है | जब अंत सामने दिखता रहे तब समय अत्यंत कम लगने लगता है | इस कम समय की मुख़्तसर सी ज़िन्दगी में हम अनायास ईर्ष्या द्वेष के चक्कर में पड़ अपनों से बैर करते रहते है , क्यों न सभी से प्रेम करते हुए बस प्रेम का प्रसार करते चलें | अंतिम यात्रा में साथ में 'लगेज' ले जाने का कोई प्राविधान नहीं है , न ही बिजनेस क्लास में ,न ही एकानमी क्लास में | सुगम और आनंददायक यात्रा होने के लिए यही सबसे बड़ी शर्त भी है | हम व्यर्थ में राग ,द्वेष , इसका , उसका ,किन्तु , परन्तु , कम ,ज्यादा के फेर में पड़ कर अपना 'लगेज' बढाते रहते हैं जो अंतिम यात्रा को पीड़ाकारी और बोझिल बना देता है |
" २१.१२.१२" को अंत नही होगा , इससे मैं भी इत्तिफाक रखता हूँ पर क्यों न हम इसे सच मान कर एक काल्पनिक तैयारी कर ही लें और सभी से प्रेम से कुछ यूं मिलें जैसे कि " कल हो न हो " |