शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

" एक कोलाज उनके... जो शरीक हैं मेरी ज़िन्दगी में........"



                                                                                           (चित्र पर क्लिक करें) 

कुछ ख्याल आज यूँ आया कि जो लोग मेरी ज़िन्दगी से जुड़े हैं या जिनसे सरोकार है मेरा , अगर उन ज़िन्दगियों को जोड़ जोड़ कर एक कोलाज बनाया जाये तब वह  कैसा बनेगा और कैसा दिखेगा | पुरानी स्मृतियों से लेकर अब तक सभी को याद कर एक जिग-सा पज़ल की तरह करीने से जोड़ने का प्रयत्न कर रहा हूँ पर अचंभित हूँ यह देख कर कि सारी कतरने मेरी लगाईं हुई जगह पर नहीं ठहर रही हैं | वह खुद-ब-खुद चल कर अपनी जगह ढूंढ कर वहीँ चिपक जा रही हैं | आकृति एक मनुष्य की ही बनती जा रही है ,शायद मेरी ही | 


देखते देखते एक कोलाज मेरे ही चित्र सा तैयार हो गया | जिनकी तरह से मैं सोचना चाहता हूँ , उन सब ने मिल कर सर का आकार ले लिया | जिन्हें मैं दिल में बसाना चाहता था , वे एक भी दिल के स्थान पर नहीं ठहरे | सब बस दिल के इर्द गिर्द एकत्र होकर दिल को आकार दे रहे थे और दिल में झाँकने का प्रयत्न कर रहे थे (देखें चित्र में ) | चूंकि वहां का स्थान रिक्त था,अतः वहां कोई उतरने की हिम्मत नहीं कर पाया | शायद लोग वहीँ रहना और जाना पसंद करते हैं ,जहाँ भीड़ भाड़ होती है |अतः कोलाज में भी मेरे दिल का स्थान रिक्त ही रहा | अब चूंकि काम तो बहुत अधिक करना पड़ता है और जो लोग भी मेरे सहयोगी है ,वे सब मेरे दायें ओर एकत्र हो गए | यह  सब कोलाज बनाते समय अपने आप हो रहा था | चाह कर भी मै कुछ लोगों की कतरनों को इधर से उधर नहीं कर पाया | अचानक से सभी जिंदगियां जीवंत जो हो चुकी थीं |

जिन्हें मैं अपनी नज़र में बसा कर रखता हूँ ,वे सब आँखों के स्थान पर आकर ठहर गए | मेरे अधरों पर मुस्कान लाने वाले बहुत कम ही लोग हैं मेरी ज़िन्दगी में , वे चंद लोग ठहरे से हैं मेरे होंठों पर | उनका मैं दिल से अहसान मंद हूँ |

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अब मेरे संपर्क में नहीं हैं और मुझसे बहुत दूर हैं | वे दूर तो खड़े हैं परन्तु वास्तविक आकार मेरे जीवन का उनके वहां होने सी ही है | वाह्य रेखाएं किसी भी चित्र की सबसे महत्वपूर्ण रेखाएं होती हैं |

और कुछ यूँ बन गया कोलाज, मेरी ज़िन्दगी में शामिल लोगों का |

ज़िन्दगी एक कोलाज ही तो है तमाम उन ज़िन्दगियों का , जो आपकी ज़िन्दगी से वास्ता रखती हैं |

14 टिप्‍पणियां:

  1. "ज़िन्दगी एक कोलाज ही तो है तमाम उन ज़िन्दगियों का , जो आपकी ज़िन्दगी से वास्ता रखती हैं |"

    बहुत सही ... :)

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  2. जी हाँ अपने मिलकर ही उकेरते हमारे जीवन का चित्र .....

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  3. उत्तर
    1. हा हा , अनूप जी एक दिन इस कविता को "मेरी पसंद ". लेख का प्रवाह कल कल बहती सरिता जैसा ही है और इसी भ्रम में ये कविता लगी उनको :).

      --

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  4. रोचक लगा ये कोलाज !:-)
    वैसे आपकी सभी रचनाएँ काफ़ी रोचक होतीं हैं ! अच्छा लगता है उन्हें पढ़कर...
    ~सादर !

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  5. कभी कभी सोचने बैठो तो लगता है ये कोलाज तो बनना खतम ही नहीं होगा कभी..कितने लोग शामिल होते हैं इसमें .
    बहुत खूबसूरत है कोलाज भी, शैली भी और कांसेप्ट भी.

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  6. कुछ ने आँखें बनायी, कुछ ने कान, कुछ तो हृदय में आकर ही बस गये। लीजिये तैयार हो गया कोलाज।

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  7. वाह......
    शायद सभी के जीवन का कोलाज कुछ यूँ ही बनेगा....
    सोच रही हूँ मेरा कैसा होगा????

    सादर
    अनु

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  8. क्या हम अकेले रह सकते हैं, नहीं... कभी नहीं... हमारी ज़िन्दगी तो उन्हीं से है जो हमारे हमकदम हैं, हमसफ़र हैं...

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