सर, मैं आई.सी.आई.सी.आई से पायल बोल रही हूँ , आप अमित बोल रहे हैं न | हाँ ! पर आप कौन , किसने नंबर दिया आपको | वह बोली , सर आपका नंबर वी.आई.पी. नंबरों की लिस्ट में था , वहीँ से मिला है | ऐक्चुअली अभी हमारे यहाँ एक बहुत अच्छा सा प्लान आया है सर, आपको रूचि हो तो मै आपसे मिलने आ जाती हूँ | ऐसे न जाने कितने फोन , कभी मैक्स लाइफ , कभी बिरला सन लाइफ , कभी एच.डी.एफ.सी. ,कभी स्टेट बैंक , कभी किसी रिजोर्ट , कभी किसी ट्रेवल ग्रुप से आते रहते है कि उनकी कंपनी में बस पैसा लगा दीजिये और फिर लाभ ही लाभ मिल जाएगा आपको | अधिकतर क्या, लगभग सारे फोन लडकियां ही करती हैं और इतने प्यार से मिठास के साथ बोलती हैं कि तुरंत दिमाग उनकी आवाज़ से उनके चेहरे के बारे में कयास लगाने लगता है | अक्सर तो मैं फोन उठाते ही 'सारी' बोलकर फोन रख देता हूँ पर कभी कभी जब लाइट मूड में होता हूँ और कुछ फुर्सत के लम्हे होते हैं और ऐसे में अगर अच्छी सी आवाज़ भी सुनने को मिल रही हो तो फोन भी कान पर लगा रह ही जाता है | फिर भी अंत में मै कह ही देता हूँ फिलहाल मेरे पास पैसे वैसे नहीं लगाने के लिए और बात वहीँ ख़त्म हो जाती है |
ऐसे ही एक काल पर एक लड़की जिद करने लगी कि , सर मेरा प्लान एक बार आप देख लीजिये बस | लेना न लेना आपकी मर्जी , आप अपाइन्टमेंट दे दीजिये प्लीज़ | मैंने कहा , मै टाइम नहीं दे पाउँगा | तुम कभी भी आ सकती हो, अगर मैं फ्री हुआ तो बात कर लेंगे | एक दिन अचानक वह आफिस आ गई | सारी कहानी सुनने के बाद मैंने कहा , देखो जहां तक बचत वगैरह या टैक्स सेविंग के प्लान होते हैं वह सब तो हम लोग खुद ही करते रहते हैं | तुम्हारी स्कीम में तो मुझे कोई विशेष आकर्षण नज़र नहीं आ रहा है | पहले तो वह धीरे धीरे बात कर रही थी , बाद में अनुनय विनय तो कम लिबर्टी कुछ ज्यादा ही लेने लगी | अरे मैंने कहा , मुझे कोई रूचि नहीं है | आप जा सकती हो | शिष्टाचार के नाते मैंने उसे एक कप चाय भी आफर कर दी |
इन सब बातों के दौरान मेरा मन यह सोचने को विवश हो रहा था कि आखिर यह लडकियां कैसे फोन पर किसी को .कन्विंस कर इन्वेस्टमेंट के लिए राजी कर पाती होंगी और कैसे फिर इन्हें कमीशन मिलता होगा | मैंने सोचा , चलो आज इस लड़की से ही यह गुत्थी सुलझाते हैं | उसने जो कुछ बताया वह सब मेरे लिए बहुत अजीब सा था | उसने कहा , सर पहली बात तो हम लोग कभी अपना सही नाम नहीं बताते | जो नाम भी रखते हैं इस जाब के लिए, प्रायः वे नाम काफी लुभावने और कर्णप्रिय से होते हैं जैसे : पायल, पियाली, स्वीटी, अनामिका, सिमरन,......और बहुत सारे बताये उसने ( वास्तव में जिनके यह नाम हों उनसे क्षमा याचना सहित )| जबकि वास्तव में उनके नाम लक्ष्मी , सुषमा, शोभा या सुमित्रा देवी टाईप होते हैं | आगे बोली फिर हम लोग फोन डाइरेक्ट्री से सरकारी अफसरों के नंबर सेलेक्ट करते हैं क्योंकि सरकारी अफसर पैसे वाले होते हैं, उनके पास समय फ़ालतू बहुत होता है और फ़ीमेल आवाज़ सुनकर जल्दी पिघल जाते हैं | आगे उसने बताया २/ ४ विज़िट में तो वह बाहर लंच भी कराते हैं और पॉलिसी तो ले ही लेते हैं | कंपनी वाले जानबूझकर ऐसी टैकटिक्स अपनाते हैं | यह सब काफी सोच समझ कर किया जाता है |
काल सेन्टर से यह लडकियां फोन करते समय अपने सामने कापी पर फोन नंबरों के आगे रिमार्क भी लिखती रहती हैं कि जिससे बात की , उसकी रिपीट वैलू है कि नहीं या कितनी काल में वह ढेर हो जाएगा | मेरे जैसे के आगे वह लिख देती हैं एन.आई. अर्थात नाट इंटेरेस्टड , जिससे कि किसे दोबारा फोन करना है किसे नहीं ,यह तय किया जा सके | फिर भी मुझे बात समझ में नहीं आ रही थी कि वार्षिक प्रीमियम लाख / डेढ़ लाख देने को कोई कैसे राज़ी हो जाता होगा , वह भी उसका रिटर्न कब मिलेगा या क्या होगा या मरने के बाद घर वालों को मिलेगा या नहीं मिलेगा | सब कुछ बहुत गोलमाल सा लग रहा था मुझे | मैंने कहा मुझे तो तुम्हे सामने सामने मना करना भी अजीब सा लग रहा है , फोन पर मना करना आसान होता है | इस पर वह बोली , यह बात हम लोग जानते हैं कि फोन पर लोग मना कर देते हैं इसीलिए पर्सनली मिलने की जिद करते हैं और सब आप जैसे नहीं होते जो जैसे फोन पर थे वैसे ही मिलने पर भी निकले | फिर उसने मुझसे ४/६ रेफेरेंसेस मांगे ,जिनसे वह वहां से निकलने के बाद मिल सके | मैंने कहा एक शर्त पर रेफेरेंस दूँगा , तुम किसी को यह नहीं बताना कि मैंने रेफेरेंस दिया है नहीं तो मेरे नाम पर लोग पालिसी करा लेंगे और बाद में गलियाँ भी मैं ही खाऊँगा |
मैंने कहा जो भी हो तुम्हारा काम तो बहुत मुश्किल है | अनजान आदमी को अचानक इन्वेस्टमेंट के लिए राजी करना , एकदम असंभव | वह मुस्कुराते हुए बोली आप चिंता छोडो , हम लोग सब मैनेज कर लेते हैं | फिर भी शिष्टाचार वश जाते जाते उससे मैंने कहा , कभी बिजली सम्बंधित कोई समस्या हो तो जरूर बताना तुम्हारी मदद कर दूँगा, फिलवक्त तो मैं तुम्हारे किसी काम का नहीं | वह जाते जाते मुझे यूं देख रही थी गोया कह रही हो , हुंह तुम और तुम्हारी बिजली |
इस पूरे सिस्टम को एक कुचक्र कहूँ या कंपनियों का एक अच्छा सा प्लान |
पिघले तो सही न ....
जवाब देंहटाएं:-)
सादर
अनु
हमारे पास तो जी पायल और पूनम के नहीं बल्कि प्रसाद और पुष्पेन्द्र के फोन आते हैं. और मैं हर बार उन्हें डपटने के बारे में सोचता हूँ लेकिन भलमनसाहत के कारन उनकी बात दो मिनट सुनकर अपनी असमर्थता व्यक्त कर देता हूँ.
जवाब देंहटाएंआपने तो खुद को पक्का इन्सुलेट कर रखा था. वो चली गयी किसी और पर बिजली गिराने. मेरी बात में यदि कुछ सेक्सिस्म झलक रहा हो तो माफी चाहता हूँ लेकिन पायल (?) ने यह खुद ही प्रकट कर दिया कि लड़कियों को ही अधिकतर ऐसे काम में क्यों एम्प्लोय किया जाता है. हमारे एक मित्र ऐसे ही एक मोहजाल में फंसकर पचास हज़ार के घाटे में चल रहे हैं.
कई बार दुःख भी होता है इन लड़के /लड़कियों के लिए , कितने फोन करती है , तब जाकर कोई स्कीम लेता है , इसके एवज़ में हजारों उलटी -सीधी बाते भी सुनती होंगी !
जवाब देंहटाएंरेफरेन्स वाली मदद को गोल मत कीजिये:)
जवाब देंहटाएंओह तो वो मेरे नंबर आपने दिए थे :-(
जवाब देंहटाएंअंतर्कथा तो आप ही जाने मैं कोई भी चांस नहीं देता
ये ब्लॉग वालियां ही इतनी हो गयी हैं कि मैनेज करना मुश्किल हो गया है !
बाकी टिप्स के लिए आभार -ध्यान से नोट कर लिया है ..
हना मेरा साफ्ट कार्नर इसलिए है बेचारी नौकरी के लिए ये सब कर रही हैं !
आप के ब्लॉग पर जिस प्रकार के कमेन्ट ब्लॉग लेखिकाओ के लिये आ रहे हैं और जिस प्रकार आप उनका अनुमोदन कर रहे हैं और नंबर मांग रहे हैं आप को याद दिलाना उचित समझती हूँ की आप जेंडर बायस को बढ़ावा दे रहे हैं
हटाएंइस अशोभनिये भाषा का में निंदा करती हूँ और आपत्ति दर्ज कराती हूँ
आपकी आपत्ति से मै सहमत हूँ | वह टिप्पणी पूर्णतया विनोद भाव में थी , फिर भी मैंने हटा दी |
हटाएंअमित जी, जिस अजाब का आपने जिक्र किया, उससे महीने में दो चार बार अपना साबका भी होता रहता है। बहरहाल... जिस टिप्पणी की बात हो रही है,वह तो अब भी मौजूद है। बेहतर होगा कि उसे हटा दिया जाए।
हटाएंकोई भी कमेन्ट अगर जेंडर बायस से लिप्त हैं उसको हटा देना ब्लॉग मालिक को आना चाहिये
हटाएंराजेश उत्साही जी बात को समझे और ध्यान दे
हास्य और विनोद और फूहड़ और जाहिल में अंतर करना कम से कम आप को आता ही होना चाहिये , व्यंग और सटायर का अर्थ अगर जेंडर बायस हैं तो वो मंजूर नहीं किया जा सकता हैं
महिला ब्लॉगर्स के लिए 'ये ब्लॉग वालियां ' के संबोधन पर घोर आपत्ति है.
हटाएंभले ही अभिन्न महिला ब्लॉगर मित्रों के लिए ही क्यूँ ना किया गया हो...पर इस तरह की भाषा अशोभनीय है.
आशा है वे लोग भी इसे पढ़ेंगी...और अपने लिए इस तरह के संबोधन प्रयुक्त करने पर एतराज जताएंगी.
किसी पुराने ब्लॉगर को इस तरह के cheap gimmick शोभा नहीं देते. टिप्पणी में कोई सार हो तो लोग खुद ही पढेंगे...
ये सब ध्यान आकृष्ट (attention seeker ) करने की हरकतें हैं . इसीलिए मैने पहले इग्नोर करना ही बेहतर समझा था...पर रचना जी की सलाह पर लगा..आपति दर्ज करा देनी चाहिए.
आपति -आपत्ति
हटाएंआदरणीया रश्मि जी , रचना जी एवं आदरणीय राजेश जी , मैं स्वयं स्त्रियों का बहुत सम्मान करता हूँ | उनके विषय में अगर कभी कुछ लिखा भी है तब सदैव शालीन एवं संयत भाषा का ही प्रयोग किया है | आदरणीय मिश्र जी की टिप्पणी की प्रति टिप्पणी के रूप में मैंने विनोद स्वरूप यह लिख दिया था कि ज़रा मेरा नंबर भी उन तक पहुंचा दें | शायद ऐसा लगा रचना जी को कि मैं उनकी मनोवृत्ति को बढ़ावा दे रहा हूँ | उनके आपत्ति करते ही मैंने अपनी प्रति टिप्पणी हटा ली | जहां तक प्रश्न मिश्र जी की टिप्पणी हटाने का है , वे एक लम्बे अरसे से लेखन कर रहे हैं | वे स्वयं भी संजीदा इंसान है | उनका भाव किसी को आहत करने का नहीं रहा होगा | हाँ ! अगर कोई फूहड़ या स्तरहीन विनोद या व्यंग करता है तब तो यह उसकी मानसिकता और दायरा हुआ | हमें उसे इग्नोर ही करना चाहिए | महत्त्व देकर महत्व नहीं बढ़ाना चाहिए | मेरी पत्नी भी महिला ब्लागर ही हैं | मुझे उन सबके मान मर्यादा और सम्मान का पूरा ख्याल है |
हटाएंफिर भी मैंने आप लोगों की भावनाओं से आदरणीय मिश्र जी को अवगत कराया और उनके उत्तर को भी मैं यहाँ पेस्ट कर दे रहा हूँ :- "
DrArvind Mishra
अमित जी ,
मैंने सहज मनोविनोद में वह टिप्पणी की थी -आप स्वयं प्रबुद्ध हैं -मुझे लगता है आपको अपने को निरपेक्ष रखना चाहिए ....फिर भी आप स्वतंत्र है अपना निर्णय ले सकते हैं ....
http://chitthacharcha.blogspot.in/2012/07/blog-post_13.html
हटाएंवहा पर इनकी टिप्पणी देखीये
Arvind MishraJuly 13, 2012 8:55 AM
ये घटनाये पूरे समाज का आईना नहीं दिखाती
मगर इनकी मीडियाई प्रस्तुति ऐसा ही दिखाती है
जैसे सारा भारतीय समाज ऐसा ही हो उठा हो ..
आपने भी बहती गंगा में आचमन कर लिया
और एक शेर की पिटी पिटाई लाईन यहाँ
झोक दी -कुछ लोगों की भावनाओं को दुलराने के लिए
पूरे संदर्भ को देखा जाना चाहिए -
और मौका हो ,उद्दीपन हो तो कई "सभ्य" के दिलों
में धड़कता वन मानुष उठ खड़ा होगा -
पुलिस व्यवस्था .कमीने पत्रकार जिम्मेदार हैं और इसे चाशनी बनाकर
प्रस्तुत करने वाले लोग
http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2010/06/blog-post_20.html
हटाएं
हटाएंकभी कभी शब्द संरचना केवल वर्ड प्ले होते हैं उनका कोई सुचिंतित अर्थ नहीं होता ...
मगर विरोध से वे अर्थ गाम्भीर्य ग्रहण कर लेते हैं :-)
भाषा विज्ञानी या शब्द विज्ञानी,वैयाकरण (फिलोलाजिस्ट) इस से सहमति व्यक्त करेगें!
शब्दों को उनके परिप्रेक्ष्य और मनोभाव से पृथक नहीं देखा जाना चाहिए .....
जब क़ोई हर बार एक से ही शब्दों का प्रयोग करता हैं तो उसकी मंशा एक ही रहती हैं ये एक मनोवैज्ञानिक का कथन हैं
हटाएंयह कंपनियों का कुचक्र भी है और खेल भी पर बेरोजगारी की बम्पर फसल वाले इस दौर में ऐसी नौकरी करना कुछ लोगों की मजबूरी भी है।
जवाब देंहटाएंसादर
क्या सत्य लिख डाला....आँखों के सामने न जाने कितने दृश्य और कानों में कितनी आवाजें आ- जा रही हैं.....
जवाब देंहटाएंक्या करे बेचारे,, जॉब की खातिर करना पड़ता है..
जवाब देंहटाएंजादा परेशानी हो इन फोन कॉल से तो सर जी,,,
डी एन दी ( do not disturb ) लगवा दीजिये
customer care me phone karke...
:-):-) :-) :-)
आपकी सलाह बहुत काम आयेगी..
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ...
जवाब देंहटाएं:)
कंपनियों का अच्छा प्लान जो यक़ीनन कुचक्र ही कहा जा सकता है .....
जवाब देंहटाएंमोबाईल के ज़माने में तो ये कॉल कभी भी कहीं भी आ सकते हैं...फोन अटेंड कर लिया तो समझिये खैर नहीं...इतने प्लान...इतनी स्कीमें...भगवान भला करे...आखिर इन्हें भी नौकरी करनी है...
जवाब देंहटाएंसत्य कथा .
जवाब देंहटाएंहालाँकि बिना बात, बात का बतंगड़ बन गया .
इस तरह के फोन हमारे पास भी अक्सर आते हैं . सरकारी अफसर हैं ना . सुनकर बेदर्दी और बेहयाई से ना कहना पड़ता है .
यहाँ सॉफ्ट कॉर्नर दिखाया और समझो फंस गए .
अनु जी से सहमत .
वाणी जी भी कुछ हद तक सही कह रही हैं .
बढिया पोस्ट है। ऐसे वाकए होते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंअब तो अपन सुनते ही कह देते हैं "नो आई एम नोट इन्टरेस्टेड" :)
जवाब देंहटाएंऔर अपना महत्वपूर्ण समय बचा लेते हैं ।
अफ़सोस होता है इन लोगों के प्लान बेचने के काम को देखकर! कितना झेलना होता है इनलोगों को!
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात समझ में नहीं आयी कि घर में क्यों नहीं टोंका गया तुमको कि प्लान मना करने के लिये दफ़्तर में चाय-पानी कराना क्या जरूरी था? इस बात को देखा जाना चाहिये भाई!
:):):)
हटाएंPRANAM.
very good thoughts.....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
sach baat hai ye company apni skeem bachne ke liye ke liye kuch bhi kar sakti hai
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही पंक्ति लिखी है, आपने............
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