बचपन गुजरा रेलवे कालोनी में | वहां से रेल की पटरियों पर दौड़ते हुए हम लोग स्कूल जाया करते थे | कभी डरे नहीं और कभी गिरे भी नहीं | दिन बीतते गए , वर्ष बीतते गए , इंजीनियरिंग की पढ़ाई की , बिजली विभाग की सेवा में आये | यहाँ भी बिजली की पचासों घातक दुर्घटनाएं देखी और सामना भी किया पर कभी भयभीत नहीं हुए | सड़क पर बाइक दौड़ाई , कार भी १२० से ऊपर भगाई पर कभी भयभीत नहीं हुए | परिवार में ,समाज में अनेक चुनौतियां ऐसी आई जो अन्य लोगों ने अस्वीकार कर दी , उन्हें भी शौक से आजमाया और अक्सर लगभग सफल ही रहे |
पर अब जो यह शौक लग गया ब्लागिंग का , यहाँ राह नहीं आसान | फूल , ख़ुशबू, नदी , पर्वत , आंसू , लज्जा, मुस्कान ,अधर इत्यादि पर कविता लिखना मुश्किल नहीं होता, पर जब आप अपनी ज़िन्दगी में आये पलों , घटनाओं ,व्यक्तियों से जुडी बाते लिखना,सुनाना चाहते है तब वह आपके नितांत व्यक्तिगत अनुभव और विचार होते हैं | जिन्हें लिखे जाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए | परन्तु अगर आपका अनुभव किसी लिंग , किसी जाति ,किसी पात्र के साथ असामान्य सा रहा हो या अपने गुणवश उस पात्र ने वैसा व्यवहार किया हो और आपने उसे ब्लाग में लिख दिया तब उस पात्र से सम्बंधित लिंग, वर्ण , जाति ,देश ,धर्म के लोग उसे अपने ऊपर आक्रमण और अतिक्रमण मानकर आपकी आलोचना प्रारम्भ कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित है | आपके लेख के एक , दो वाक्य से ही वे लोग आपके पूरे चरित्र और व्यक्तित्व का आकलन कर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर देते हैं | वास्तविक जीवन में अगर वह व्यक्ति दोषपूर्ण आचरण कर रहा होगा तब निश्चित तौर पर उसके आसपास का समाज उसकी आलोचना करता होगा | अगर कोई व्यक्ति समाज में सम्मान पूर्वक स्थापित है तब निश्चित तौर पर उस व्यक्ति ने अपने कार्यों और आचरण से स्वयं को स्थापित किया होगा | किसी की रचना या लेखन से अगर कोई विपरीत संकेत जो लिंग,वर्ण विरोधी लगते भी हो ,तब भी क्षण मात्र में उसके बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए |
विनोद भाव में की गई बाते अक्सर साथ में बैठे अन्य लोगों को अरुचिकर भी लगती हैं परन्तु उसका अर्थ यह कभी नहीं होता कि विनोदी स्वभाव का व्यक्ति लम्पट या असंस्कारी है | मनुष्य के आचरण और व्यवहार के लिए वातावरण और उससे भी अधिक जिसके साथ व्यवहार किया जा रहा है उसका मानसिक स्तर प्रभावशाली होता है | बच्चे के साथ आप बच्चे जैसा और विनोदी के साथ आप भी विनोदपूर्ण व्यवहार ही करते हैं |
तर्कहीन विवाद की तो कोई सीमा नहीं होती | जब दो लोग पूर्व से ही पूर्वाग्रह से ग्रस्त हों तब विवाद की स्थिति में वे एक दूसरे का दोष ही देखते हैं और सारी कटुता और कलुषता बाहर निकाल देते हैं | कोई भी व्यक्ति शत प्रतिशत सच नहीं होता और न ही शत प्रतिशत झूठ | परिस्थितियाँ और सापेक्षता के अनुसार उनके गुण दोष बदलते रहते हैं |
ब्लागिंग में अपने जीवन के अनुभव और परस्पर व्यवहार को उद्घाटित करने का एक अच्छा अवसर और तल मिलता है | एक दूसरे को पढ़ कर उस पर टिप्पणी किये जाने का भी प्राविधान है | कभी कभी पढने वाला लिखने वाले के मूड को बिना समझे उस पर टिप्पणी कर देता है जो उस लेख या रचना से मेल नहीं खाती और अर्थ का अनर्थ हो जाता है | मानसिक परिपक्वता के अभाव में भी ऐसा हो जाता है | परन्तु अकस्मात जिस व्यक्ति के आचरण और सामान्य ख्याति पर लोग प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं , उसे यह सब बहुत सालता है | मेरी पिछली पोस्ट पर की गई टिप्पणियों पर अनायास हुए घमासान से , जिहोने आपत्ति की वे सच में दुखी हुए या नहीं परन्तु उनकी आपत्ति का तरीका अच्छा मुझे भी नहीं लगा |
या फिर सच्ची ब्लागिंग छोड़कर बस इश्क ,मोहब्बत , मौत, ख़्वाब, आंसू , ख्याल और ख्वाहिश सरीखे विषय पर ही चंद आड़ी तिरछी पंक्तियाँ लिख कर इतिश्री समझी जाए |
" बहुत कठिन है डगर .......ब्लागिंग की ........"
यही तो ब्लॉगिंग है। खट्टे-मीठे अनुभव तो मिलते ही रहते हैं, लगे रहिए। हैप्पी ब्लॉगिंग।
जवाब देंहटाएंमामला सीरियस लग रहा है...ब्लॉग्गिंग तो एक फन...इसका मज़ा लीजिये...हुजूर...
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग की डगर सच मे कठिन है सर!
जवाब देंहटाएंबहुत पहले मैंने अपनी भी पीड़ा कुछ यूं बयाँ की थी ः
जवाब देंहटाएंछटांक भर सेंस ऑफ़ ह्यूमर तो लाओ यार...
मेरे कल के चिट्ठाजगत् की सुविधा के बारे में आलेख पर देबाशीष ने तथा जे पी नारायण ने पूरी बातों को खुल कर स्पष्ट कर ही दिया है, मगर फिर भी कुछ मित्रों को मेरी भाषा नहीं जमी. कूड़ा शब्द इस चिट्ठा-प्रविष्टि से उठाया गया है, जो 2006 का है. तब हम चिट्ठाकारों ने एक दूसरे के चिट्ठापोस्टों को कूड़ा कहकर खूब मौज लिए थे और इस बात का किसी ने कोई ईशू नहीं बनाया था. इस बार भी मुझे ऐसा ही लगा था परंतु मैं बेवकूफ़, कमअक्ल, ग़लत था.
रहा सवाल कूड़ा वाली बात का तो ये बात रिलेटिव प्रस्पेक्ट में कही गई थी. और मैंने किसी चिट्ठा विशेष का तो नाम ही नहीं लिया था. जो नाम लिया था वो मेरे खुद के चिट्ठे का नाम था. चूंकि मुझे मेरी स्थिति अच्छी तरह ज्ञात है. मेरे व्यंग्य आलोक पुराणिक के व्यंग्यों के सामने कूड़ा हैं. मेरी ग़ज़ल-नुमा घटिया तुकबंदी जिन्हें मैं व्यंज़ल कहता हूँ किसी भी साधारण सी ग़ज़ल के सामने कूड़ा है. मेरी ब्लॉगिंग प्रतिबद्धता ज्ञानदत्त् पाण्डेय के सामने कूड़ा है क्योंकि नित्य, सुबह पाँच बजे पूजा अर्चना की तरह ब्लॉग लिखकर पोस्ट नहीं कर सकता. अनिल रघुराज और प्रमोद सिंह की तरह न तो मेरे पास भाषाई समृद्धता है न होगी – उनके सामने मेरा लिखा, मेरे अपने स्वयं के प्रस्पेक्टिव में कूड़ा ही है. मेरा तकनीकी ज्ञान देबाशीष, ईस्वामी, पंकज नरूला, अमित, जीतेन्द्र चौधरी इत्यादि के सामने कूड़ा ही है, और इन्हें मुझे स्वीकारने में कोई शर्म नहीं है. यही बात क्यों, मैं अपने पिछले पाँच-दस साल पहले के लिखे को कूड़ा मानता हूँ. मैं अभी उन्हें पढ़ता हूँ तो सोचता हूँ कि अरे! मैंने ये क्या कूड़ा कबाड़ा लिखा था. हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने अपनी जवानी में एक रोमांटिक उपन्यास लिखा था. उसे वे कूड़ा मानकर बाद में छपवाए ही नहीं, और बाद में अभी हाल ही में हंस के पाठकों की राय जाननी चाही कि उस भाषायी, कथ्य और रचना की दृष्टि (स्वयं राजेन्द्र यादव की दृष्टि से) से उस कूड़ा को छपवाना चाहिए या नहीं. निराला ने जब पहले पहल हिन्दी में तुकबन्दी रहित, रीतिकालीन छंदबद्ध से अलग रबरनुमा कविता लिखी तो उसे कूड़ा कहा गया. आज छंदों वाली कविता शायद ही कोई लिखता हो...
पर फिर, दिनेश राय द्विवेदी के शब्दों में – यही तो ब्लॉगिंग का अपना मजा है!
कूड़ामय ब्लॉगिंग जारी आहे....
व्यंज़ल
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छटांक भर सेंस ऑफ़ ह्यूमर तो लाओ यार
माना जिंदगी कठिन है कभी तो हंसो यार
जमाना पढ़े या न पढ़े तुम्हें रोक नहीं सकता
कूड़ा लिखो कचरा लिखो कुछ तो लिखो यार
यूँ इस तरह जमाने का मुँह ताकने से क्या
कुछ नया सा इतिहास तुम भी तो रचो यार
ऐसी बहसों का यूं कोई प्रतिफल नहीं होता
पर बहस के नाम पर किंचित तो कहो यार
मालूम है कि लोग हंसेंगे मेरी बातों पे रवि
जब बूझेंगे पछताएंगे जरा ठंड तो रखो यार
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ब्लॉग्गिंग हो या ज़िन्दगी का सफ़र ..आप इन सब से नहीं बच सकते ..परन्तु फिर भी आगे तो बढ़ना ही है ..
जवाब देंहटाएंहम भी देख लेते हैं कि कितने लोग कब कब ठोकर खाये हैं, उनसे ही सीख लेते हैं, सच में डगर कठिन है।
जवाब देंहटाएंअरे.................
जवाब देंहटाएंइश्क ,मोहब्बत , मौत, ख़्वाब आंसू , ख्याल और ख्वाहिश ....
ये एग्झाम्पिल तो हमार लगत है ?????
:-)
सादर
अनु
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जवाब देंहटाएं.
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जब आप अपनी ज़िन्दगी में आये पलों , घटनाओं ,व्यक्तियों से जुडी बाते लिखना,सुनाना चाहते है तब वह आपके नितांत व्यक्तिगत अनुभव और विचार होते हैं | जिन्हें लिखे जाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए | परन्तु अगर आपका अनुभव किसी लिंग , किसी जाति ,किसी पात्र के साथ असामान्य सा रहा हो या अपने गुणवश उस पात्र ने वैसा व्यवहार किया हो और आपने उसे ब्लाग में लिख दिया तब उस पात्र से सम्बंधित लिंग, वर्ण , जाति ,देश ,धर्म के लोग उसे अपने ऊपर आक्रमण और अतिक्रमण मानकर आपकी आलोचना प्रारम्भ कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित है | आपके लेख के एक , दो वाक्य से ही वे लोग आपके पूरे चरित्र और व्यक्तित्व का आकलन कर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर देते हैं | वास्तविक जीवन में अगर वह व्यक्ति दोषपूर्ण आचरण कर रहा होगा तब निश्चित तौर पर उसके आसपास का समाज उसकी आलोचना करता होगा | अगर कोई व्यक्ति समाज में सम्मान पूर्वक स्थापित है तब निश्चित तौर पर उस व्यक्ति ने अपने कार्यों और आचरण से स्वयं को स्थापित किया होगा | किसी की रचना या लेखन से अगर कोई विपरीत संकेत जो लिंग,वर्ण विरोधी लगते भी हो ,तब भी क्षण मात्र में उसके बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए |
विनोद भाव में की गई बाते अक्सर साथ में बैठे अन्य लोगों को अरुचिकर भी लगती हैं परन्तु उसका अर्थ यह कभी नहीं होता कि विनोदी स्वभाव का व्यक्ति लम्पट या असंस्कारी है | मनुष्य के आचरण और व्यवहार के लिए वातावरण और उससे भी अधिक जिसके साथ व्यवहार किया जा रहा है उसका मानसिक स्तर प्रभावशाली होता है | बच्चे के साथ आप बच्चे जैसा और विनोदी के साथ आप भी विनोदपूर्ण व्यवहार ही करते हैं |
तर्कहीन विवाद की तो कोई सीमा नहीं होती | जब दो लोग पूर्व से ही पूर्वाग्रह से ग्रस्त हों तब विवाद की स्थिति में वे एक दूसरे का दोष ही देखते हैं और सारी कटुता और कलुषता बाहर निकाल देते हैं | कोई भी व्यक्ति शत प्रतिशत सच नहीं होता और न ही शत प्रतिशत झूठ | परिस्थितियाँ और सापेक्षता के अनुसार उनके गुण दोष बदलते रहते हैं |
आपने सारे वाद-विवाद-प्रतिवाद-फसाद के पीछे का सार निचोड़ कर रख दिया है... पर यह ब्लॉगिंग है मित्र... आप तमाम सदिच्छायें रखते हुऐ भी किसी को भी अपना मत रखने या विवाद रचने से रोक नहीं सकते... चाहे वह कितनी ही गैरवाजिब बात या जिद कर रहा हो... इसलिये अपना तो फंडा है कि ज्यादा सीरियसली नहीं लेने का किसी को भी... खुद को भी नहीं... आप भी आजमाइये... मस्त रहेंगे और अच्छी कटेगी भी...
...
डगर तो कठिन है, इसमें कोई शक नहीं|
जवाब देंहटाएंसावधानी हटी दुर्घटना घटी|
जीवन की हर डगर कठीन ही होती है.... ब्लॉग्गिंग क्यूँ अछूता रहेगा ...
जवाब देंहटाएंइईहे तो है ब्लॉग नगरिया ...
जवाब देंहटाएंअनुभव परिपक्व बनाते हैं ...
फूल , तारे , खुशबू , इश्क के इतर भी हम बहुत कुछ लिखते हैं , इसलिए इस कैटिगीरी में स्वयं को नहीं रखते !
सार्वजनिक मंच से कही बात का असर कुछ ऐसा ही होता है.
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग बड़ा बवाल काम है। वो कहा है किसी कवि ने:
जवाब देंहटाएंमैं जो कभी नहीं था, वह भी दुनिया ने कह डाला।
मस्त रहा जाये।
क्या हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ???
जवाब देंहटाएंकी आप कुछ भी लिखे और क़ोई भी कुछ ना कहे
पूर्वाग्रह ह हैं उनलोगों के मन , मस्तिष्क और शब्दों में जो नारी के प्रति कुछ भी विनोद पूर्ण कहने को अपना अधिकार समझते हैं और आपत्ति करने पर ये कहते हैं @अगर आपका अनुभव किसी लिंग , किसी जाति ,किसी पात्र के साथ असामान्य सा रहा हो या अपने गुणवश उस पात्र ने वैसा व्यवहार किया हो और आपने उसे ब्लाग में लिख दिया तब उस पात्र से सम्बंधित लिंग, वर्ण , जाति ,देश ,धर्म के लोग उसे अपने ऊपर आक्रमण और अतिक्रमण मानकर आपकी आलोचना प्रारम्भ कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित है |
ब्लोगिंग पर आप या क़ोई भी जितनी बार पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के कारण नारी पर तंज कसेगा , जेंडर बायस युक्त हास्य कहेगा , जेंडर बायस को बढ़ावा देगा यानी औरो को भी प्ररित करेगा की वो नारी जाति पर हंसे ख़ास कर ब्लॉग लिखती महिला पर
मै और दूसरी महिला ब्लोग्गर उस पर आपत्ति दर्ज कराते ही रहेगे
मेरे लिये मुद्दे से जुड़ कर ब्लॉग लिखना और हिंदी ब्लॉग समाज से जेंडर बायस युक्त बातो पर आपत्ति करना इस माध्यम का उपयोग हैं
ब्लॉग्गिंग बहुत आसन अगर आप में क़ोई पूर्वाग्रह ना हो तो
क्या आप में क़ोई पूर्वाग्रह हैं ??
वो जो पिछली पोस्ट पर आप ने चित्र दिया था क्या उस महिला से परमिशन ली थी
अगर कभी आपकी किसी परचित महिला का चित्र आप ब्लॉग पर देख ले तो क्या आप इग्नोर करदेगे
उसी प्रकार से वही सहिष्णु भाव परिचित के लिये भी रखे
नेट पर चित्र पडे होने का अर्थ ये नहीं हैं की आप उसको उठा कर अपने ब्लॉग पर चिपका ले
फ़ोन क्या केवल महिला के आते हैं , पुरुष के भी प्लान बेचने के आते ही हैं , उनका चित्र क्यूँ नहीं दिया
अमित भाई जान लीजिये अब फिर झेलिये -कोई हमसे तो पूछे किस किस तरह मैंने झेला है यह सब...
जवाब देंहटाएंसारे शिष्ट वरिष्ठ जन एक ओर बस एक निजी पीड़ा का सार्वजनीकरण ,आर्तनाद एक ओर....
आप भी ..चलिए आगे बढिए ....कुछ और लिखिए वो पुराना बुम्बाट टाईप -देखा पढ़ा पर कमेंटिया नहीं पाया था ,अब वैसा ही
वंस मोर की फरमाईश है .....बाकी शहनाई के आगे फिफिहरी/पिपिहरी की आवाह का कोई मायने नहीं... :-)
@परन्तु उनकी आपत्ति का तरीका अच्छा मुझे भी नहीं लगा |
जवाब देंहटाएंअब आपत्ति करने के लिये भी आप से पूछ कर आप के पसंद के तरीके से करनी होगी ????
एक आलेख का लिंक दे रही हूँ ज़रा पढ़े जरुर
http://sandoftheeye.blogspot.in/2012/08/blog-post_22.html
http://ghughutibasuti.blogspot.in/2012/08/blog-post_22.html
जवाब देंहटाएंplease read its an eye opening post
Sahi kaha bilkul amit ji....jab mene blog likhna start kia tha...mera bhi kuch yahi haal tha...
जवाब देंहटाएंKai functions to samajh nahi aate the shuru me...par ab iska maza hi kuch aur he...
nice post :)
" बहुत कठिन है डगर .......ब्लागिंग की ........"
जवाब देंहटाएंहर राह कठिन होती है अमित जी,
लेकिन भावनाएं सरल हो तो कोई मुश्किल नहीं
आभार ...विचारणीय पोस्ट !
बहुत कठिन है डगर .......ब्लागिंग की!!
जवाब देंहटाएंअमित जी,
जैसे पनघट की डगर आपसी हंसी मजाक चुहल से पनिहारियों के लिए आसान हो जाती है।
जैसे कंकर फैकने वालों से भी निरपेक्ष निर्भय रह अपनी धुन में बढ़ती चली जाती है।
सर पर मटका उठाए गरदन तनी अवश्य रहती है किन्तु माथे से भी उँची जगह जल की होती है।
बस ऐसे ही ब्लागिंग की राह भी बडी आसान हो जाती है।
सारा खेल अहंकार का है, अन्य का अहंकार भी कठिनाईयों का सर्जन करता है और हमारे सोए अहंकार को छेड जगाता है यदि हमारा अहंकार भी प्रदिप्त हुआ कि- "बहुत कठिन है डगर .......ब्लागिंग की!!"