१९४७ के पहले हम क्या थे , आज़ादी कैसे मिली , कितनी शहादतें हुईं , यह सब सर्विदित है | देश में अंग्रेजों का शासन था पर तब अनुशासन भी था | परन्तु तब यह बात सालती थी कि हम अपने ही देश में निर्णय लेने को और अपना भविष्य सोचने के लिए स्वतन्त्र नहीं थे | इन्ही भावनाओं ने उस समय के लोगों में देशभक्ति जागृत की और परिणाम स्वरूप हम १९४७ से स्वतन्त्र हैं |
परन्तु उस समय के लोगों का आज़ाद होने के बाद का मंतव्य संभवतः यह रहा होगा कि हम स्वयं अपने देश में सु-शासन स्थापित करेंगे | विभिन्नता में एकता को संजोये हुए सदैव देश की तरक्की की बात होगी और उस पर अमल भी होगा | संसाधनों का सदुपयोग करते हुए मूलभूत अवस्थापना के क्षेत्र में यथा बिजली , पानी ,सड़क हर आम आदमी को उपलब्ध करायंगे | गाँव का विकास गाँव में ही होगा | कृषि प्रधानता को महत्व देते हुए किसानो को खेती के क्षेत्र में तकनीकी के सहारे उन्हें आत्मनिर्भर और समाज में अग्रिणी होने का मौका देंगे | राजनीति में पारदर्शिता होगी और देशवासियों को अपने राजनेताओं पर गर्व होगा | परन्तु आज़ादी का यह मंतव्य कहाँ पूरा हुआ | अंश मात्र भी पूर्ण नहीं हुआ |
उस वांछित मंतव्य से भटक जिस गंतव्य को हम पहुँच गए , वहां निराशा ही निराशा है | राजनेताओं के कृत्य हमें शर्मसार करते हैं | गवर्नेंस की बात कहीं दिखती नहीं | मूलभूत आवश्यकताओं का घोर आभाव है | वैश्विक स्तर पर किसी भी स्पर्धा में हमारा कोई नाम नहीं | हमसे छोटे छोटे देश खेलकूद में ही कई गुना आगे रहते हैं | भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई लड़ाई लड़ने को तैयार नहीं | शीर्ष पर बैठे लोगों का कॉकस इतना मजबूत है कि उसे भेद पाना आसान नहीं | आज हमें इस बात से कोई ख़तरा नहीं कि कोई दूसरा देश हमें गुलाम बना लेगा , क्योंकि अब हम सोने की चिड़िया नहीं कहलाते और हैं भी नहीं | इसलिए इस पर ध्यान देने कि आवश्यकता नहीं है कि हम फिर से गुलाम हो जायेंगे | आज विश्व स्तर पर देशों के आपसी संबंधों का ढांचा इस प्रकार है कि कोई देश किसी भी दूसरे देश पर आक्रमण तो कर सकता है परन्तु उसे अपने अधीन कर पाना संभव नहीं और हमारे देश के सन्दर्भ में तो बिलकुल भी नहीं |
परन्तु भय और चिंता तो इस बात की है कि आज हम अपनों के ही गुलाम हो गएँ हैं | देश की , प्रान्तों की ,कोई स्पष्ट दिशा नहीं है | नेता काम वो करते हैं जिसमे उन्हें निजी लाभ हो | उस काम से क्षेत्र को फायदा होगा अथवा नहीं और न ही कभी क्षेत्र की जनता को विश्वास में लेकर कोई काम किया जाता है | कही कहीं वही सड़क वर्ष में दस बार मरम्मत की जाती है और कहीं लोग आज भी सड़क से वंचित हैं | जिस क्षेत्र का नेता प्रभावशाली वहां बिजली की आपूर्ति अधिक की जाती है | आज भी हम शहरों के हर घर रोशन नहीं कर पायें है , गाँव की तो बात अभी बहुत दूर है | रोजगार परक योजनाओं का आभाव है | युवा दिशाहीन हो भटक रहा है | और यही युवा हमारे कल का भविष्य है | अभावग्रस्त समाज से ही नक्सलपंथी जन्म लेते हैं जो हमारे अपने ही हैं परन्तु परिस्थितिवश उनसे भी हमें युद्ध ही करना पड़ रहा है जो बहुत ही घातक और शर्मनाक है |
मंतव्य क्या था और गंतव्य क्या हो गया ऐसे में आखिर हमारा कर्तव्य क्या होना चाहिए !सरकारों को बहुत संवेदनशील होना पडेगा | प्रजातंत्र में चूँकि संख्या बल का महत्व है अतः राजनीति में साफ़ सुथरी छवि के लोगों को आगे आना होगा और हमारा कर्तव्य और दायित्व होना चाहिए कि हम मत का प्रयोग अवश्य करें और सही चयन भी करें | हमारे देश के लोगों की क्षमता और बौद्धिक स्तर में कहीं कोई कमी नहीं है | आखिर गुजरात में ऐसा क्या है जो यू.पी., बिहार में नहीं क्या जा सकता | आवश्यकता है विज़न और विल पॉवर की | अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता को उत्प्रेरित किया जाय तब वह अराजकता का स्वरूप लेने लगता है | जिसकी आड़ में अराजक तत्व कुछ ज्यादा ही नुकसान कर जाते हैं |
आखर फिर करें तो क्या करें ? हर आदमी अनुशासित हो | दिए गए दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करे |अपने आसपास होने वाले गलत कामों का मजबूती से विरोध करे | दिए गए लालच से प्रभावित हो ब्लैकमेलिंग के धंधे में न शामिल हो जाए | साफ़ सुथरी पत्रकारिता हो | १९४७ से पहले तो आज़ाद होने के लिए जान देनी पड़ी थी और खून बहाना पडा था परन्तु अब यह सब बिलकुल नहीं करना है | सेना में भर्ती के समय मैदान में उमड़ा समूह कितना अनियंत्रित और बेमेल सा लगता है | प्रत्येक व्यक्ति बिलकुल अजीब सा और रा मटीरियल सा लगता है और वही सारे व्यक्ति सेना में जाकर सैनिक बन कितने प्रभावशाली और आपस में सिंक्रोनाइज्ड लगने लगते हैं अर्थात वही जनसंसाधन ट्रेनिंग के पश्चात नए रूप में तैयार हो जाता है | बस यही सोच हमारे देश के शीर्ष पर बैठे नेताओं की होनी चाहिए | सारी योजनाओं का रोजगारपरक और ग्रामोन्मुख होना अत्यंत आवश्यक है | पंजाब की ओर जाने वाली ट्रेनों में बिहार और यू.पी. का मजदूर जानवरों की तरह भर भर कर काम की तलाश में वहां जाता है और सिवाय शोषित होने के कुछ भी हासिल नहीं होता | काम की तलाश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पलायन को रोकना होगा तभी क्षेत्रवाद पर रोक लगेगी और आसाम जैसी घटनाएं रोकी जा सकेंगी |
विदेश से काला धन तो जब आएगा तब आएगा ,अपने ही देश में बहुत सारा कला धन जमा है | ( आये दिन लोगों के लॉकर से रुपये भरभरा कर गिरते रहते हैं , चाहे वह फिजा ही क्यों न हो ) चुनाव में इसके उपयोग पर और कड़ा प्रतिबन्ध लगना चाहिए | शिक्षा ,स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत अधिक धन प्राविधानित तो किया जाता है पर अपने लक्ष्य तक वह धन पहुँच नहीं पाता |
अंत में सबसे आवश्यक बात जनसंख्या के विषय में भी की जानी चाइये | हमारे संसाधन अत्यंत सीमित हैं और अगर जनसंख्या इसी प्रकार बढती रही तब सड़क पर चल पाना भी मुश्किल हो जाएगा | प्रत्येक परिवार दो बच्चों तक सीमित हो, इसका भी कड़ा क़ानून बनाया जाना चाहिए | उनको शिक्षित किया जाना सर्वोच्च वरीयता पर होना चाहिए | सरकार से अलग जो लोग संपन्न वर्ग के हैं उनका भी थोडा दायित्व बनता है कि आखिर उन्हें जो कुछ भी हासिल हुआ है ,इसी समाज से हुआ है अतः अपने आसपास के और संपर्क में आने वाले लोगों की भरपूर मदद भी करें |
प्रत्येक व्यक्ति बस यह संकल्प ले ले , चाहे वह जिस भी वर्ग का हो कि वह अपनी संतान को ईमानदारी से अपने से श्रेष्ठ बना कर समाज को देगा तभी उनका परिवार ,समाज और अन्ततोगत्वा देश का कल्याण हो सकेगा |
जय हिंद !जय भारत !
वह अपनी संतान को इमानदारी से अपने से श्रेष्ठ बना कर समाज को देगा तभी उनका परिवार ,समाज और अन्ततोगत्वा देश का कल्याण हो सकेगा |
जवाब देंहटाएं---सामान्य किन्तु श्रेष्ठ निदान!!
आपक़े सपनों को मै साधुवाद देता हूँ...सलाम करता हूँ...ये ही है शहीदों के सपनों का भारत...वन्दे मातरम...
जवाब देंहटाएंप्रत्येक व्यक्ति बस यह संकल्प ले ले , चाहे वह जिस भी वर्ग का हो कि वह अपनी संतान को इमानदारी से अपने से श्रेष्ठ बना कर समाज को देगा तभी उनका परिवार ,समाज और अन्ततोगत्वा देश का कल्याण हो सकेगा |
जवाब देंहटाएंसच है यह पाठ हर घर के बच्चे को पढाना होगा .... सार्थक विचार
प्रत्येक व्यक्ति बस यह संकल्प ले ले , चाहे वह जिस भी वर्ग का हो कि वह अपनी संतान को ईमानदारी से अपने से श्रेष्ठ बना कर समाज को देगा तभी उनका परिवार ,समाज और अन्ततोगत्वा देश का कल्याण हो सकेगा |
जवाब देंहटाएंसही बात है...शुरुआत घर से ही करनी होगी तभी देश के सुखद भविष्य की ओर अग्रसर हो सकेंगे|
जिस दलदल में देश है ... उसमें से उसे निकालना अंग्रेजों से कहीं अधिक कठिन है
जवाब देंहटाएंकल 17/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत बड़ा बदलाव चाहिए ... जिस की शुरुआत हम सब को अपने आप से ही करनी होगी ... तभी कुछ हो सकता है नहीं तो अब उम्मीद करना भी बेकार होता जा रहा है !
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग ने पूरे किए 13 साल - ब्लॉग बुलेटिन – यही जानकारी देते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन तैयार की है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत सार्थक और सकारात्मक चिंतन है सर...
जवाब देंहटाएंजाने कब अराजकता और दुर्नीतियों के चक्रव्यूह को निस्वार्थ, सार्थक सोच और स्पष्ट दृष्टिकोण रखने वाले लोग तोड़ पाएंगे...? सात दरवाजों के पीछे सुरक्षित कुरुओं ने हर एक दरवाजा इतना मजबूत बनाया हुआ है इस बार कि अभिमन्युवों की पूरी फौज भी पहले दरवाजे तक पहुँचते पंहुचते ही ढेर हो जाती है... लेकिन यह भी सच है कि इसका तोड़ भी हमें ही निकालना होगा...
सादर।
गंतव्य और मंतव्य की सार्थकता तभी संभव है जब कर्त्तव्य का पूर्ण रूप से पालन किया जाये... सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंइस तरह के विचारों को सबके दिल में पकना होगा ...तभी सच्चे अर्थों में बदलाव संभव है ...बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंमंझा ऐसा उलझा है कि सुलझाने वाले के हाथ कटना तय हैं..
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