रेस्त्रां में प्रायः तो खाने का शौक नहीं , क्योंकि घर के खाने क़ी बात ही कुछ और होती है , पर कभी कभार बच्चों के आग्रह पर , जब वे अपनी मम्मी को खुश करना चाहते हैं , बाहर खाना हो जाता है | ( बना बनाया खाना किसी भी पत्नी को मिल जाए, खुश होना स्वभाविक है ) | हम लोगों के २ / ३ रेस्त्रां निश्चित हैं जहां अक्सर हम लोग खाना खाने के लिए जाते हैं | एक दो जगह ऐसी हैं जहाँ ग़ज़ल गायकी भी होती रहती है | अच्छे खासे उम्रदार लोग सितार और तबला बजाते है और कोई एक साहब ग़ज़ल गाते हैं | वे लोग आपकी फरमाइश पर भी गाना या ग़ज़ल सुनाते है | मुझे यह कुछ अजीब सा लगता है क्योंकि उनके चेहरे पर संगीत का आनंद नहीं झलकता बल्कि दो जून क़ी रोटी जुहाने का एक प्रयास मात्र लगता है , जिससे उनके सामने बैठ कर शौकिया खाना खाने में अजीब सा लगता है |
खाने का आर्डर , फिर खाना आना और फिर खाने क़ी समाप्ति तक वेटर से एक अच्छा खासा संवाद स्थापित हो चुका होता है | अब तक वह जान चुका होता है कि, इस आयोजन का अभिप्राय क्या है , कौन किसको खुश करने के लिए वहां लाया है और मुद्दे क़ी बात भी वह जान लेता है कि बिल कौन भुगतेगा | जिसके द्वारा बिल का भुगतान किये जाने की संभावना अधिक होती है , उसका वह विशेष ध्यान रखता है और उससे भी ज्यादा उसका ध्यान रखता है जिसको खुश करने के लिए बिल भुगतान करने वाला आत्मघाती प्रयास में वहां आया है | रेस्त्रां में कितने भी लोग एक साथ खाना खाने क्यों न गए हों परन्तु बिल भुगतान करने वाला किसी एक को ही सर्वाधिक खुश देखना चाहता है और वेटर यह बखूबी जानता है |
बारी जब बिल की आती है , तो कोई बात नहीं उसका तो भुगतान करना ही है, परन्तु एक समस्या होती है कि वेटर को टिप कितनी दी जाए | अगर भुगतान कैश में किया जा रहा है तब तो बिल क़ी खातिर दिए गए पैसे में से क्या बचेंगे , उसी में कुछ हिसाब लग जाता है कि टिप भी हो जाए और शेष पैसे के लिए प्रतीक्षा न करनी पडी | अगर कार्ड से भुगतान कर रहे हैं , तब टिप तो कैश ही देनी पड़ती है | टिप की राशि के बारे में विद्वानों का मत है कि वह कुल बिल राशि का १५ / २० प्रतिशत होना चाहिए अगर वेटर ने सेवायें अच्छी दी हैं, अन्यथा १० प्रतिशत दे कर निपट लेना चाहिए | कुछ का कहना है अगर आप प्रायः उस रेस्त्रां में जाते रहते हैं तब तो टिप पर ध्यान दे, अन्यथा अगर कभी दुबारा वहां न जाना हो तो जैसी आपकी मर्ज़ी |
मैंने अक्सर देखा है टिप देने में कोई नियम नहीं चलता | अक्सर बिल भुगतान करने वाला वेटर की सेवायें नहीं देखता , अपितु जिसको अपने साथ खाने पर ले गया है उसे ही इम्प्रेस करने के लिए वेटर को अनाप शनाप टिप दे बैठता है और ऐसे ही लोगों के इर्द गिर्द वेटर घूमते नज़र आते हैं | टिप व्यवस्था पर होटल / रेस्त्रां प्रबंधन एकदम मौन रहता है | कभी कभी तो खाना काफी ठंडा अथवा जायका रहित होता है तब सारा क्रोध उस वेटर पर ही आता है पर बिल तो भुगतान कर देते हैं | हाँ ! टिप देने की इच्छा नहीं होती , जोकि शायद गलत भी है |
टिप कितना देना है , यह रेस्त्रां के क्लास पर भी निर्भर करता है | जो लोग रेस्त्रां में अच्छी खासी टिप देते हैं उन्ही लोगों को 'हाई वे' पर बने ढाबे में खाना खाने के बाद बिना टिप दिए फुर्र से कार में जाते भी देखा है मैंने |
होटल या रेस्त्रां में पहुँचते ही गार्ड का सैलूट मारना , वैलेट पार्किंग की जिद करना फिर वेटर का असमान्य व्यवहार सब कुछ एक नाटक और ओवर एक्टिंग सा लगता है | मुझे तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता |
खाना खाने के बाद शायद ही कभी कोई बिल का टोटल कर के देखता होगा , उसमे 'सेवा कर' भी अच्छा खासा लगा होता है | परन्तु वेटर को टिप देते समय अनायास आध्यात्मिक चिंतन करना पड़ता है और थोड़ी असहजता भी महसूस होती है | बेहतर है होटल प्रबंधन टिप को भी बिल में ही जोड़ कर हम जैसे लोगों को इस समस्या से निजात दिलवा देने की व्यवस्था करें |
फिर क्या.... खाओ पियो खिसको....
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सादर
अनु
टिप को भी लोकपाल के दायरे में ले आया जाये। रेट फ़िक्स किये जायें। :)
जवाब देंहटाएंदुविधा जायज है। :)
सबसे बेहतर है सेल्फ सर्विस वाले रेस्तरां में खाना खाया जाए ...
जवाब देंहटाएंअच्छी सर्विस वाले वेटर को टिप देने का मन करता है , मगर जहाँ खाना बेस्वाद हो , ठंडा हो , खाना सर्व होने में बहुत इंतज़ार करना पड़े, ऐसी जगह टिप देने और दुबारा जाने से क्या फायदा ...
बिल में जोड़े जाने का हम विरोध करेंगे :)
हम भी बिल में जोड़े जाने का विरोध करते हैं... अपन तो खाओ, पियो और खिसको वाले हैं... कभी कभी खुश होकर १० रुपये छोड़ दिया करते हैं....
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न होता है तभी कुछ देते हैं, नहीं तो निकल लेते हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लेख
जवाब देंहटाएंकभी-कभी अच्छी सर्विस वाले वेटर को टिप देने का मन करता है, लेकिन मर्ज़ी हमारी :)... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंसर्विस टैक्स ही इतना है कि टिप क्या देना... :)
जवाब देंहटाएंटिप तो तभी देते हैं जब हम उनकी सर्विसेस और खाने से प्रसन्न हों ।
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