" बदसूरत मौत ....एक खूबसूरत की ....."
फूल खुश था,
उन हाथों में जाकर,
हाथ खुश थे,
उसकी ख़ुशबू पाकर |
पर खुशबू,
मुस्काई थी धीरे से,
उड़ जाऊँगी,
सुबह तक मसले फूलों से |
मसले हुए लम्हे,
जब बन गए मसले,
उस फूल के ,
वो हाथ न थे,
कहीं आस पास |
नाम था फिजा,
उस फूल का,
जो लटकी मिली,
चाँद के सलीब पे |
आखरी २ पंक्तियों में कविता की जान है....
जवाब देंहटाएं(जिस्में ज़िक्र है किसी की जान जाने का )
बहुत बढ़िया
सादर
अनु
किसी की जान जाने के ज़िक्र से किसी में जान आ गई |
हटाएंआपकी टिप्पणी तो स्वयं में ही कविता बन गई | बहुत खूब | आभार |
बहुत सटीक
हटाएंvery good
जवाब देंहटाएंVery nice..
जवाब देंहटाएंदुखद .....
जवाब देंहटाएंचाँद के सलीब पे
जवाब देंहटाएंफूल की मौत
अफ़सोस...!
दुखद अन्त..क्या यही प्रेम है?
जवाब देंहटाएंअफ़सोस !
जवाब देंहटाएंkuchh kehne ko raha hi nahi
जवाब देंहटाएंअफसोस जनक घटना पर बहुत अच्छी कविता लिखी है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही दुखद
जवाब देंहटाएंएक इंसान का दुखद अंत ...
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद घटना सच ही कहा है नेता तो अपने बाप के भी सगे नहीं होते
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
Touchy
जवाब देंहटाएंएक और फ़िज़ा आज फ़िर सलीब पे लटक गई । बहुत ही दुखद और अफ़सोसनाक
जवाब देंहटाएंथड़ा रुक कर, थमकर सोचना होगा महिलाओं को, सबल, जागरूक, सचेत बनना है या सब कुछ होते हुए भी कमज़ोरी का दामन थामे रहना है .....
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