घर,परिवार,समाज,संस्थाओं, विद्यालयों अथवा राजनैतिक दलों तक में यही संस्कार स्थापित किये जाने पर बल दिया जाता है कि सभी स्थानों पर छोटे लोग,आयु अथवा पद में,अपने से बड़ों का सम्मान करें एवं यथासम्भव बड़ों से सलाह , मशवरा करने के उपरान्त ही कोई कार्य करें । एक सीमा से अधिक सम्मान करने से और सदैव सलाह मांगने से धीरे धीरे वह "सलाह" कब उन बड़ों की 'मर्जी' में परिवर्तित हो जाती है ,पता ही नहीं चलता ।
'सलाह' और 'मर्जी' में बहुत अंतर है ,परन्तु 'सलाह' देने वाला व्यक्ति अपने पद ,आयु और सम्बन्ध का दुरूपयोग कर 'सलाह' के स्थान पर धीरे धीरे अपनी 'मर्जी' व्यक्त करना कब प्रारम्भ कर देता है , ज्ञात ही नहीं रहता ।
दूसरे की 'मर्जी' के अनुसार कार्य करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने कार्य को आत्मविश्वास और निर्भीकता से नहीं कर पाता । बच्चों में तो ख़ास कर निर्भरता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि उपयुक्त 'सलाह' अथवा मशवरा के आभाव में वह लाचार से हो जाते हैं , जो उनके स्वतन्त्र रूप से विकसित होने में बाधा बनता है । बात बात में अपनी 'मर्जी' व्यक्त करने वाला व्यक्ति परोक्ष रूप से स्वयं को स्वयं-भू समझने लगता है ।
यही 'मर्जी' जब परम और चरम स्थिति को प्राप्त करती है तब 'mercy' में परिवर्तित हो जाती है । जब कोई किसी को हानि पहुचा पाने की स्थिति से उबारने की क्षमता रखता हो तब वह व्यक्ति 'mercy' की शक्ति रखने वाला माना जाता है । 'mercy' की पराकाष्ठा के तौर पर राष्ट्रपति महोदय को मृत्यु दंड पाये व्यक्ति को 'mercy' दे कर उक्त दंड से माफ़ करने का अधिकार है ।
शादी ,ब्याह में भी पहले लड़के वालों की 'मर्जी' चलती थी ,जो अभी भी कायम है और गरीब परिवारों की लड़कियों की शादियां तो सदा से लड़के वालों की 'मर्सी' पर ही टिकी रही हैं । प्रेम करने वाले भी पहले एक दूसरे की 'मर्जी' का ख्याल रखते हैं । धीरे धीरे जब प्रेम कमतर होने लगता है तब बस जितनी जिसकी 'मर्सी' बस उतना ही प्रेम बिखर पाता है ।
अब जब लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं , तब सबसे अधिक राय ,मशवरा सभी सीटों पर प्रत्याशियों को टिकट दिये जाने को ले कर हो रहा है । अभी तक टिकट आला कमान की 'मर्जी' से मिलता था ,अबकी लग रहा है ,इस 'मर्जी' ने 'mercy' का स्थान ले लिया है । लाल जी टंडन , मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह के हाव भाव देख कर तो यही लगता है । अब 'mercy' पता नहीं किसकी , कहीं मोदी की तो नहीं । कमोबेश यही हाल सभी पार्टियों का है , कहीं लालू की 'मर्सी' है तो कहीं केजरी की ,तो कहीं सोनिया की । सलाह उस व्यक्ति से ही ली जानी चाहिए जिसे सलाह, मर्जी और मर्सी में स्पष्ट रूप से अंतर ज्ञात हो ।
अब शायद मैंने 'सलाह' , 'मर्जी' और 'मर्सी' में अंतर स्पष्ट कर दिया है । 'आत्मविश्वास' आखिर इतना अधिक क्यों न हो जैसा कि अत्यंत मशहूर निम्न पंक्तियों में उल्ल्लखित है :
"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ,
खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है "।
(यह पोस्ट मैंने अपने एक मित्र के आग्रह पर लिखी है )
मतलब इस पोस्ट में आपकी मर्जी कम चली . चलिए मर्सी ही सही ...
जवाब देंहटाएं"दूसरे की 'मर्जी' के अनुसार कार्य करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने कार्य को आत्मविश्वास और निर्भीकता से नहीं कर पाता ।" Nice line, I'm really impressed......
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, मर्जी से मर्सी तक की यात्रा है यह।
जवाब देंहटाएंबेहतर समझाया मर्जी और मर्सी को !
जवाब देंहटाएंसही समझाया आपने....
जवाब देंहटाएं~सादर
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन समोसे के साथ चटनी फ्री नहीं रही,ऐसे मे बैंक सेवाएँ फ्री कहाँ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपने तो सही समझाया अब देखेंगे समझ आया या नहीं ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया लॉजिक है .
समय के साथ मर्जी मर्सी में बदल जाती है...
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