कुछ तो है.........
नैना खिलखिलाते हैं ,
अधर मिचमिचाते हैं ,
कपोल भिंचे जाते हैं ,
स्याह लटें डोलती हैं ,
कुछ तो है.........
बालियां बोलती हैं ,
बिंदिया बहकती है ,
आवाज़ महकती है ,
कनखियाँ घूरती हैं ,
कुछ तो है........
मन कुरेदता है ,
तन सिमेटता है ,
राहें डोलती हैं ,
बाहें खोलती हैं ,
कुछ तो है.........
रोते रोते हंसती हैं ,
हँसते हँसते रोती हैं ,
कसमें कसमसाती हैं ,
स्मृतियाँ उभर आती हैं ।
कुछ तो है..........
कुछ तो है ???
जवाब देंहटाएंपता चले तो बताइयेगा :-)
सादर
अनु
आपकी लिखी रचना शनिवार 08 मार्च 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बिलकुल है -अकारण थोड़े ही इतना कुछ !
जवाब देंहटाएंस्मृतियों की दस्तक यूँ ही नहीं...... कुछ तो है ....
जवाब देंहटाएंसच कहा, कुछ तो है।
जवाब देंहटाएंबड़े ही नाज़ुक से तार छेड़ गयी आपकी अभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों का सृजन...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - पुरानी होली.
सुंदर अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE.पर आपका इंतजार रहेगा। शुभ रात्रि।
जवाब देंहटाएंफागुन में कुछ तो होना भी चाहिये...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ है..
जवाब देंहटाएं"रोते रोते हंसती हैं, हँसते हँसते रोती हैं" दुखदायी समय में भी मन को प्रसन्न रखना चाहिये ....
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