आज सवेरे सवेरे आइने में खुद को जरा निहार रहा था गौर से ,तो मुझे मेरे ही अंग कुछ अजनबी से लगे । लगा जैसे वे मेरी अनसुनी ,अनदेखी कर रहे हों । मेरी ही आँखें ,जो मै देखना चाहता हूँ,वह नही देखती,मेरी उंगलियाँ जिसे स्पर्श करना चाहती हैं ,उन्हें नही छू पाती । पग जिधर डग भरना चाहते हैं ,उधर बढ़ ही नही पाते ।मुझे लगने लगा जैसे मै अपने ही घर में मकान मालिक की जगह किरायेदार की औकात में आ गया हूँ । एक दार्शनिक चिंतन की तरह मै इस पर अभी विचार कर ही रहा था कि ’निवेदिता’ की आवाज़ आई ,कॉलबेल बज रही है ,देख लीजिये शायद दूध वाला हो ,ले लीजिये । यह क्या,तुरंत ही मेरे पाँव चल दिये ,बाहर की ओर ,गेट खोलने को । जो पैर, मेरा लाख कहा नही मानते ,तुरंत ही मेरी श्रीमती जी की आवाज़ पर दौड़ पड़े । दूध लेने के पश्चात मैं बैठ गया टी.वी. देखने ,अभी न्यूज़ चैनल लगाया ही था कि वे बोलीं , कलर्स लगाइये,बालिका वधू आ रहा होगा,तुरंत ही मेरी उंगलियों ने बिना मेरी बात सुने रिमोट उठाया और चैनल बदल दिया ।
मैं वहाँ से उठ कर कम्प्यूटर पे आ गया ,ब्लॉगिंग करने,अभी लॉग इन किया ही था कि पुनः वे आ गईं और बोली, पहले मेरा ब्लॉग देखिये ,आज चर्चा मंच पर लगा है । तुरंत ही मेरे हाथ चले और उनका पासवर्ड डाल उन्हीं का ब्लॉग खुल गया । मै अब तक सवेरे से असमंजस में ही था कि यह हो क्या रहा है ?
मै अपने ही शरीर में अपने अंगों को अब उनका समझ रहा था । पर अब होश आने से भी क्या लाभ । अब तो बहुत देर हो चुकी थी । मेरी अर्धांगिनी अब मेरी पूर्णांगिनी बन चुकी थीं । मैने प्रारम्भ मे अपने आधे शरीर पर ही उनको कब्जा दिया था, तभी वे अर्धांगिनी कहलाई थीं ,पर धीरे धीरे वे तो पूरे मकान पे काबिज हो गईं और मैं ही अपने मकान में किरायेदार हो गया ।
अब वो पूर्णांगिनी हैं,और मैं उनका अर्धांगना नहीं अंशागना हूँ।
मैं वहाँ से उठ कर कम्प्यूटर पे आ गया ,ब्लॉगिंग करने,अभी लॉग इन किया ही था कि पुनः वे आ गईं और बोली, पहले मेरा ब्लॉग देखिये ,आज चर्चा मंच पर लगा है । तुरंत ही मेरे हाथ चले और उनका पासवर्ड डाल उन्हीं का ब्लॉग खुल गया । मै अब तक सवेरे से असमंजस में ही था कि यह हो क्या रहा है ?
मै अपने ही शरीर में अपने अंगों को अब उनका समझ रहा था । पर अब होश आने से भी क्या लाभ । अब तो बहुत देर हो चुकी थी । मेरी अर्धांगिनी अब मेरी पूर्णांगिनी बन चुकी थीं । मैने प्रारम्भ मे अपने आधे शरीर पर ही उनको कब्जा दिया था, तभी वे अर्धांगिनी कहलाई थीं ,पर धीरे धीरे वे तो पूरे मकान पे काबिज हो गईं और मैं ही अपने मकान में किरायेदार हो गया ।
अब वो पूर्णांगिनी हैं,और मैं उनका अर्धांगना नहीं अंशागना हूँ।
bahut hi acchi post
जवाब देंहटाएंअर्धांगनी से पूर्णांगिनी बनने तक का सफ़र काफी रोमांचक लगा .निवेदिता जी को बहुत बहुत बधाई . अर्धांगना और अन्शागना अल्पकालिक ही रहे .धीरे धीरे आप दोनों ही पुर्नान्गना और पूर्णांगिनी बन जाये यही हमारी कामना है .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट .. निवेदिता जी को बहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंयही सम्पूर्णता कायम रहे !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,नब्बे प्रतिशत लोंगों का यही हाल है,आभार.
जवाब देंहटाएंप्रगति सही है लेकिन अभी बहुत गुंजाइश है! :)
जवाब देंहटाएंनिवेदिता के ब्लाग का जिक्र किया तो उसकी कड़ी भी देनी चाहिये जिससे कि जनता वहां पहुंचकर उसे बांच सके। :)
यह तो सम्पूर्णता है ... एक दूजे के बगैर अधूरे
जवाब देंहटाएंek dusre ka ho jaana...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंSmiles ...Wonderful and appealing narration !... All women must be like her and all men should be like you.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर। :)
जवाब देंहटाएंसादर
bahut achhe se samajh nahi paaya ye post agar imaandari se kahoon...zyaada follow nahi kiya hai shayad isliye....
जवाब देंहटाएंhttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
आप दोनों की जोड़ी धन्य है।
जवाब देंहटाएंbadlaaw kafi rochak tha ..............sundar rachnaa aapko bahut badhai
जवाब देंहटाएंहा हा...सही कहा आपने, ऐसा ही होता है| इसीलिए मैं इस झमेले से दूर ही रहना चाहता हूँ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंहा हा...
बेहद खूबसूरत भाव....यूँ ही सफ़र चलता रहे...ढेरों शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंlajabab...pahli baar aapke blog pe aana hua..behad accha laga..bilkul naye andaj ki rachna padhkar behad accha laga..harid badhayee ke sath
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