"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
शनिवार, 9 जुलाई 2011
"पलकोँ में समाई बारिश"
बारिश को खुली आंखोँ से देखने की एक बार कोशिश की , बूंदे पलकोँ में उलझ गईं और आँसू बन आँखों में समा गईं शायद, तभी शायद ये आँसू कभी सूखते नही, और वैसी बारिश भी तो अब नही होती ।
वाह यह बारिश .....खूब आनंद लीजिये ...!
जवाब देंहटाएंबारिश को अगर खुली आंखोसे देख्नेगे तो यही होगा !
जवाब देंहटाएंकभी बारिश में खड़े होकर आँखे मूंदकर मजा लीजिये !
चित्र और पंक्तियाँ अच्छी लगी !
आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower
वाह यह बारिश .....खूब आनंद लीजिये ...!
बढिया चित्र। आभार॥
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबाद में बारिश चाहे जो भी हाल करे जब आती है तो स्वागत खुश हो कर ही किया जाता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रमय पोस्ट.
खुबसूरत बारिश .....
जवाब देंहटाएंachhi baarish...
जवाब देंहटाएंHappy raining !!!
जवाब देंहटाएंवर्षा की चित्रकारी की टपकती फुहारें।
जवाब देंहटाएंएक अनोखा अंदाज़ ...बहुत खूब
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