"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
ये एम एस टी वाले
"सखी सैंयां तो बहुतै जवान हैं,
ट्रेनिया डायन खाय जात है।
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ट्रेनिया होए गई मोर सौतिया,
पिया का लाद लई गई ना।
:)
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