"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
"सरकार"
तुम जियो मरो,सड़ो गलो,
हमें क्या,हम तो सरकार हैं,
तुम बहो बाढ़ में दबो मलबे में,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
कॉमनवेल्थ में तुम्हे हो शरम,
हमे क्या,हम तो सरकार है,
डेमोक्रेसी चुनी तुमने,
हमे क्या,हम तो सरकार है ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें