"शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं,
मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
जले हुए खत
काजल से कतरे
तैरते हुए
हवा में
गोया
जले पंख
हो तितली के।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें